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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ भट्टारक संप्रदाय का राज्य था उस समय भटानिया कोल निवासी साहु टोडर की प्रार्थना पर पण्डित राजमल्ल ने जम्बूस्वामी चरित की रचना की (ले. ५७९८०)। ___माथुर गच्छ की दूसरी मध्यकालीन परम्परा माधवसेन के शिष्य विजयसेन से आरम्भ हुई । इन के बाद इस में क्रमशः मासोपवासी नयसेन, श्रेयांससेन, अनन्तकीर्ति तथा कमलकीर्ति भट्टारक हुए। कमलकीर्ति ने संवत् १४४३ में नाथदेव के राज्यकाल में एक मूर्ति स्थापित की (ले. ५८६)। कमलकीर्ति के बाद क्षेमकीर्ति और उन के शिष्य हेमकीर्ति हुए। देवकीर्ति, पद्मकीर्ति, प्रतापचन्द्र, हेमचन्द्र आदि मुनि इन के आम्नाय में थे । पद्मकीर्ति के शिष्य हरिराज ने संवत् १४६९ में ग्वालियर में वीरमदेव के राज्यकाल में प्रवचनसार की एक प्रति लिखी थी (ले. ५८८)। हेमकीर्ति के गुरुबन्धु रत्नकीर्ति ने देवसेनकृत आराधनासार पर संस्कृत टीका लिखी (ले. ५८९)। हेमकीर्ति के पट्टशिष्य कमलकीर्ति हुए । आप ने संवत् १५०६ में एक चंद्रप्रभ मूर्ति स्थापित की ( ले. ५९० )। आप की आम्नाय में संवत् १५०६ में ग्वालियर में डूंगरसिंह के राज्यकाल में भविसत्तकहा की एक प्रति लिखी गई (ले. ५९१ )। आप ने संवत् १५१० में एक महावीर मूर्ति स्थापित की (ले. ५९२ ) कमलकीर्ति के शुभचन्द्र और कुमारसेन ये दो पट्टशिष्य हुए। १०९ राजमल्ल पर विस्तृत विवेचन के लिए जम्बूस्वामी चरित (माणिक चंद ग्रंथमाला) की पं. मुख्तार कृत प्रस्तावना देखिए । इसी प्रकरण में ले. ६०६ व नोट ११५ भी देखिए ११० नाथदेव कोई स्थानीय शासक रहे होंगे। १११ देखिए पूर्वोक्त नोट १०१ ११२ देखिए पूर्वोक्त नोट १०२ For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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