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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ काष्ठासंघ - माथुरगच्छ ५६६ ) । इन के आम्नाय में संवत् १५२१ में ग्वालियर में कीर्तिसिंह के राज्यकाल १०४ में ज्ञानार्णव की एक प्रति लिखी गई ( ले. ५६७ ) । संवत् १५२९ और संवत् १५३१ में आप ने दो आदिनाथ मूर्तियां स्थापित की ( ले. ५६८-६९ ) । संवत् १५३७ में एक नेमिनाथ मूर्ति तथा संवत् १५४८ में एक चौबीसी मूर्ति भी आप ने स्थापित की (ले. १०५ में ५७०-७१ ) । इन में पहली प्रतिष्ठा कल्याणमल्ल के राज्यकाल की गई थी । संवत् १५७५ में सुलतान इब्राहीम के राज्य काल में १०६ चौधरी टोडरमल ने गुणभद्र के आम्नाय में महापुराण की एक प्रति लिखी ( ले. ५७२ ) । गुणभद्र के प्रशिष्य ब्रह्म मंडन ने संवत् १५७६ में सोनपत में इब्राहीम के राज्य काल में स्तोत्रादिका एक गुटका लिखा (ले. ५७३ ) । संवत् १९५८७ में आप के एक शिष्य ने शान्तिनाथ चरित्र लिखा (ले. ५७४ ) । संवत् १५९० में हुमायून के राज्यकाल में गुणभद्र के शिष्य धर्मदास के आम्नाय में धनदचरित्र की एक प्रति लिखी गई (ले. ५७५ ) । १.७ गुणभद्र के पट्ट पर भानुकीर्ति भट्टारक हुए । संवत् १६०६ में शाह सलीम" के राज्य काल में साह रूपचंद ने अब्राह्माबाद में उत्तरपुराण की एक प्रति आप को अर्पित की ( ले. ५७६ ) । भानुकीर्ति के शिष्य कुमारसेन के आम्नाय में संवत् १६१५ में अकबर के राज्यकाल में भविष्यदत्तचरित की एक प्रति लिखी गई (ले. ५७७ ) । आप के आम्नाय में ही संवत् १६३२ में आगरा में अकबर १०४ देखिए नोट १०१ १०५ कल्याणमल कोई स्थानीय शासक रहे होंगे । १०६ दिल्ली के लोदी सुलतान-सन् १५१८-२६ ई. १०७ इस ग्रन्थ के कर्ता के विषय में मतभेद है । एक मत से महिंदु या महीचंद्र इस के कर्ता हैं, किंतु ग्रंथांतर के उल्लेख से ज्ञात होता है कि इस के कर्ता दो हैं, महदू और बंभज्जुग | १०८ दिल्ली के सूर वंश के शासक - १५४५ - १५५४ ई. For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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