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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० भट्टारक संप्रदाय में अगरवाल साध्वी देवश्री ने पंचास्तिकाय की प्रति लिखवाई थी [ ले. ५५५ ] | आप ने संवत् १४७३ में एक मूर्ति स्थापित की (ले. ५५६ ) । गुणकीर्ति के पट्टशिष्य यशःकीर्ति हुए । आप ने ग्वालियर में डूंगरसिंह के राज्यकाल में" संवत् १४८६ में भविष्यदत्तपंचमीकथा की एकप्रति लिखी [ ले. ५५७ ] | आप ने पांडवपुराण लिखा तथा त्रिभुवन स्वयंभू कृत अरिष्टनेमिचरित की एक अधूरी प्रति को स्वयं पूरा किया [ ले. ५५८-५९ ] । यशः कीर्ति के शिष्य पंडित रइधू ने संवत् १४९७ में ग्वालियर डूंगर सिंह के राज्यकाल में एक आदिनाथ मूर्ति स्थापित की [ले. ५६० ] | इन के सन्मतिजिनचरित से पता चलता है कि अगरवाल जाति के क्षुल्लक खेल्हा ने ग्वालियर में चंद्रप्रभ की उत्तुंग मूर्ति करवाई थी [ले. ५६१ ] । यशः कीर्ति से गुरुमन्त्र पा कर सिंहसेन ने आदिपुराण की रचना की [ले. ५६२ ] । यशः कीर्ति के पट्टशिष्य मलयकीर्ति हुए । आप ने संवत् १५०२ में एक यंत्र तथा संवत् १५१० में एक मूर्ति स्थापित की [ ले. ५६३५६४ ]। मलकीर्ति के अनन्तर गुणभद्र भट्टारक हुए । इन के आम्नाय में अगरवाल जिनदास ने संवत् १५१० में ग्वालियर में डूंगर सिंह के राज्यकाल में समयसार की एक प्रति लिखवाई [ ले. ५६५ ] । संवत् १५१२ में गुणभद्र ने पंचास्तिकाय की एक प्रति ब्रह्म धर्मदास को दी [ ले. १०१ - १०२ तोमरवंश का इतिहास अभी सुनिश्चित नहीं हुआ है । वीरमदेव, डूंगर सिंह, कीर्तिसिंह और मानसिंह इन चार राजाओं के उल्लेख इसी प्रकरण में हुए I १०३ पंडित रहधू की अन्य कृतियों के विवेचन के लिए पं. परमानन्द का एक लेख देखिए अनेकान्त वर्ष १० पृ. ३७७ For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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