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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० भट्टारक संप्रदाय [५९८ - लेखांक ५९८ - लाटीसंहिता-राजमल्ल श्रीमति काष्ठासंघे माथुरगच्छेथ पुष्करे च गणे। लोहाचार्यप्रभृतौ समन्वये वर्तमाने च ॥ ६४ आसीत् सूरिकुमारसेनविदितः पट्टस्थभट्टारकः । ॥ ६५ तत्पढेंजनि हेमचंद्रगणभृत् भट्टारकोर्वीपतिः .. ॥ ६६ तत्पट्टेभवदर्हतामवयवः श्रीपद्मनंदी गणी... ॥ ६७ तत्पट्टे परमाख्यया मुनियशःकीर्तिश्च भट्टारको नैग्रंथ्यं पदमार्हतं श्रुतबलादादाय निःशेषतः । सर्पिर्दुग्धदधीक्षुतैलमखिलं पंचापि यावदसान् त्यक्त्वा जन्ममथं तदुग्रमकरोत् कर्मक्षयाथै तपः ।। ६८ [ अध्याय १] लेखांक ५९९ - मुगति शिरोमणि चूनडी महेंद्रसेन अरे राज लवली जहांगीरका फिरिय जगति तिस आनि हो । शशि रस वसु विंदा धरहौ संवत मुनहु सुजानहो ॥ गुरु मुनि माहेंद्रसेनजी पदपंकज नमुं तास हौ । सहर सुहाया बूडियै कहत भगौतीदास हौ ।। ३५ (म. ३६) लेखांक ६०० - अनेकार्थ नाममाला सोलह सय रु सतासियइ साढि तीज तम पाखि ॥ गुरु दिन श्रवण नक्षत्र भनि प्रीति जोगु पुनि भाषि ॥ ६६ साहिजहांके राजमहि सिहरदिनगर मंझारि । अर्थ अनेक जु नामकी माला भनिय विचारि ।। ६७ गुरु गुणचंदु अनिंद रिसि पंच महाव्रतधार । सकलचंद तिस पट्ट भनि जो भवसागर तार ॥ ६८ तासु पट्ट पुनि जानिए रिसि मुनि मादिसेन । भट्टारक भुवि प्रगट जसु जिनि जितियो रणि मैन । ६९ For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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