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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ६०३] १३. काष्ठासंघ-माथुरगच्छ २३१ ....... कवि सु भगौतीदासु। तिनि लघुमति दोहा करे बहुमति करहु न हासु ॥ ७० [ अ. ५ पृ. १५] लेखांक ६०१ - ज्योतिषसार वर्षे षोडशशतचतुर्नवतिमिते श्रीविक्रमादित्यके पंचम्यां दिवसे विशुद्धतरके मास्याश्विने निर्मले । पक्षे स्वातिनक्षत्रयोगमहिते वारे बुधे संस्थिते राजत्साहिसहावदीनभुवने साहिजहां कथ्यते ।। श्रीभट्टारकपद्मनंदिसुधियो देवा बभूवुर्भुवि काष्ठासंघशिरोमणीभ्युदयदे ख्याते गणे पुष्करे । गच्छे माथुरनाम्नि जोजतिवरा कीर्तिर्यशः तत्पदात् तत्पट्टे गुणचंद्रदेवगुणिनस्तत्पट्टपूर्वाचले ॥ सूर्याभाः सकलादिचंद्रगुरवस्तत्पदृशोभाकराः संजाता हि महेंद्रसेनविपुला विद्यागुणालंकृताः ॥ . . 'वर्धमानके देहरई नौतन कोट हिसार । दास भगौतीने भन्यौ सो पुणु परोपकारि ।। (म. २) लेखांक ६०२ - वैद्यविनोद ____ श्रीमद्भट्टारकमाहेंद्रसेनगुरवे नमः ॥ .. 'सत्रहसइं रुचिडोत्तरई सुकल चतुर्दशि चैतु । गुरु दिन भनी पुरनु करिउ सुलितांपुरि सह जयतु ।। लिखिउ अकबराबाद णिरु साहजहां के राज । साहनि मइसंपइसरिसु देवकोसमजवाज ।। कृष्णदासतनुरुह गुणी नयरी बुडियइ वासु । सुहृद जु जोगीदास कउ कवि सु भगवतीदासु ॥ (म. ३) लेखांक ६०३ - बृहत् सीता सतु देसकोस गजि बाज जासु नमहि नृप क्षत्रपति । जहांगीरको राज सीता सतु मै भनि किया ॥८० For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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