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________________ यत निर्माण ७३ - जो (दिम्द) - दिन में जीर्ण-शीर्ण हुए टेसू (ढाक) के पत्र के समान दामो पाण्पनाशकल्पम् फीका, भवति - होता है। यह गाया परमात्मा की अनुपम विलक्षणता का अपूर्व उदाहरण है। विभिन्न उपमानों में परमात्मा को उपमित कर आनंदित होते हुए आचार्यश्री परमात्मा का मुख दर्शन कर अन्य कवियों की भांति इमे चन्द्र से उपमित करते हुए अचानक अटक गये। दिलोकनीय परमात्मा की कमनीय काया की आकर्षक, मनभावन मनोहारिता में मुग्ध हो गये। माम्य, शीतल, शक्तिप्रेरक और आहलादक वदन की आभा से प्रभावित हो गये। उपमा के अनुमगन में पाये गये व्योमपितारी सकलक विधु के आखो के सामने आते ही दिन में निम्तेज एव फीके पहुए विवर्ण दने हुए पलाम के पत्रवत् दिम्द की ओर जाता है। और, पुन गदा सुधावी, समुञ्चल, सर्दय पीतल, निर्मल, सर्वदा हितकारी, सोत्तम प्रकााण, धगतविहारी, निष्कलक, ओजस्वी आत्मविधु के मुखचन्द्र के दर्शन m ar उपपा के ऊपर उपमेय का दताकर उन्हें श्रेष्ठ सिन्द कर रहे हैं। अतुलनीय की तुलना कसे ? अनुपम को उपमा कौन सी ? परम वीतरागी चतन्यधन जियो न तो कपाय पी कानिमा और न कर्मों का मालिन्य। ऐसे समुन्दर परमात्मा के लिए पद के दान कर प्टि पर उसका प्रभाव देखने हेतु दृष्टिपान करते हैं तो दर । जालोर , देव-देवेन्द्रों, पृष्मी नाक के नर-नरेन्द्रों और अघोलंक के भात सयो को परमाला र गुलदान से प्रसन्न और प्रभावित हात पाा है। इन मदक यो प्रदल आउपण परमामा । आचार्यश्री नगद लिए "नेवारि" पद का उपयोग दिया।जा प्रेम-भक्ति परमोत्यर्पता का समापनेत याारण में होता । क्या आखाकी सगानी भरोधाले परमा?
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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