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________________ ७२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि भूमिका का विकास होता जाता है, वैसे-वैसे स्थूल और सूक्ष्म के सम्बन्धो का ज्ञान जागृत होता है। इस ज्ञान से दोनों का समन्वय और दोनो का भेद स्पष्ट झलकने लगता है लेकिन Conscience activity के बिना यह सभव नही है। इसलिए कहा है Stand up, power will come, glory will come, punty will come and everything that is excellent will come when the sleeping soul is arisen to do conscience activity चेतना का विकास साधना का अभियान है। वीतराग की अपेक्षा वीतरागत्व कही अधिक सुन्दर है परतु बिना उस साधना के वीतरागत्व के दर्शन दुर्लभ हैं। अब हम देखें यह वीतरागत्व कितना Dynamic है। इसी बल पर वीतराग विश्व के आध्यात्मिक उत्थानचक्र को गतिमान रखते हैं। कट्टर शत्रु को भी अपनी गद्दी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बनाते हैं। पतित को प्रेरणा देकर पावन करते हैं, थके हुए को गति देते हैं, सोये हुए को उठाते हैं, उठे हुए को चलाते हैं, चलते हुए को मंजिल पर पहुंचाते हैं। इस प्रकार सुन्दर, प्रिय, नजाकत, राग की रुचियो से रहित, अत्यन्त पवित्र परमाणुओं से निर्मापित नयनहारि परमात्मा की देहपर्याय मे विशिष्ट दर्शनीय परम आभावान् मुखाकृति के दर्शन कर उस मनोहारिता को दर्शाते हुए कहते हैं वक्त्रं क्व ते सुर - नरोरग- नेत्रहारि, निःशेष-निर्जित-जगत्रितयोपमानम्। बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥१३॥ सुरनरोरगनेत्रहारि - देव, मनुष्य और भवनवासी नागकुमार जाति के देवेन्द्र (धरणेन्द्र) आदि के नेत्रो को हरण करनेवाला निःशेषनिर्जितजगत्रि- सम्पूर्ण रूप से तीनों लोकों के उपमानो को तयोपमानम् जीतने वाला अर्थात् उपमा रहित। तुम्हारा वक्त्रम् मुख, आनन क्व कहां? (और) कलंकमलिनम् काले काले धब्बों से मलिन, निशाकरस्य चन्द्रमा का बिम्ब मण्डल, बिम्ब क्व - कहाँ,
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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