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________________ इन्क - ९ O O ort ८. भाव-प्रभाव O O द्रव्य एक महज एवं स्वाभाविक तत्त्व है। द्रव्य का आना, द्रव्य का होना, द्रव्य का द्रव्य का द्रव्य से सम्बन्ध बनना यह बहुत स्वाभाविक होता चला जा रहा है। काल व्यतीत चुके हैं लेकिन हम यह देख रहे हैं कि द्रव्य घटनाओ को उद्वेलित है और घटनाएँ हजारों भावों को उभारती हैं। भावकर्म हमारी अपनी ही चनरूप है। ये भाव हमें स्वभाव से विभाव मे परिवर्तित करने का प्रयत्न इस समय घटनाओ के निमित्त से ही आत्मद्रव्य की पहचान कर निजभाव और माय द्वारा भीतर से घटनातीत होने की कला हमें भक्तामर स्तोत्र से उपलब्ध ۲۰۰۴ ۱ द द्रव्य, भक्ति भाव है और स्तवन से टूटना प्रभाव है । द्रव्य से भाव वडा है और २ प्रभाव यहा है। द्रव्य की कोई कीमत नहीं होती । चन्दनवाला के उड़द के वाकुले नृत्य था, लेकिन चन्दना के भाव मूल्यवान थे और उन भावो से भी बढ़कर प्रभाव था। इस प्रकार द्रव्य की अपेक्षा भावो का और भावो की अपेक्षा अधिक है। और प्रभाव के इस महत्त्व को आचार्यश्री ने बहुत अच्छी तरह से समझाते हुए आस्ता तव स्तवनमस्त- समस्त-दोष, त्वत्सकथाsपि जगता दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरण कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि ॥ ९ ॥
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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