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________________ ३२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि १ सोऽहम् तथापि तव बुद्धिहीन, शर्महीन, विचारहीन और शक्तिहीन वैसा मै, फिर भी तेरा हूँ। समर्पण के चरम शिखर पर पहुॅचा हुआ साधक परमात्मा से अपनी कपट रहित अवस्था मे स्व-आलोचना करता है। रागद्वेष से सर्वथा रहित सपूर्ण वीतरागदशा मे लीन परमात्मा को ऐसा कहना "मै तेरा ही हूँ” (अन्य किसी का अव हो नही सकता ) विचित्र तो लगता है परन्तु भक्ति की परमोच्चदशा में यह क्षम्य है। ? तव भक्तिवशात् - तेरी भक्ति के अधीन हो, तेरे विशिष्ट परमार्थ भाव से प्रभावित होकर में भक्त तेरा, और मुझसे की जाने वाली भक्ति भी तेरी । यहाँ समर्पण की सर्वोच्चता का अन्तिम अभियान निखरता है। ३ तव स्तव कर्तुं प्रवृत्त - तेरी स्तुति करने के लिए तत्पर हूँ । सन्नद्ध हूँ। वृत्त याने अवस्था, दशा, प्रकृति । हे परमात्मा । मै आज प्रकर्ष भाव से, प्रमोदभाव से और प्रसन्न भाव से अपनी सासारिक अवस्था का विसर्जन कर तुझ स्वरूप मे लीन होकर निजम्वरूप को प्रकट कर रहा हूँ। तेरी स्तुति करने के लिए चित्त प्रसन्न अवस्था वाला मे तुझे पाकर धन्य हो गया। मृगी प्रीत्या आत्मवीर्य अविचार्य निजशिशो परिपालनार्थं मृगेन्द्र कि न अभ्येति । सामान्य रूप से इसका अर्थ हे हरिणी प्राति से अपने वत्स की रक्षा करने के लिए अपन सामर्थ्य की विचारे बिना क्या सिंह का सामना नही करती अर्थात् अवश्य करती है। उदाहरण ऐसा है एक वन के भीतर एक हरिणी अपने बच्चे को लेकर लाड़-प्यार के साथ उसे पाल रही थी। अचानक एक वनराज मिह आता है, हरिणी के बच्चो को पकड़ने का प्रयास करता है। वह हरिणी से उसके बच्चे की छीना-झपटी करता है। हरिणी अपने उच्च की रक्षा के लिए मिह का मुकाबला करती है। आचार्य श्री किसको सुना रहे थे ? मुझे नही, आपको नहीं, राजा को नहीं, विद्वान को नही, नगर जनो को नही, वे तो स्तुति कर सवे एक मात्र परमात्मा के प्रति। उन्होंने परमात्मा से प्रश्न पूछा - परमात्मन् । क्या जिस समय उस हरिणी के बच्चों को झपटने के लिये प्रयास करता है, उस समय पुरी उस बनरा का मुकाबला नहीं करेंगी ? इस प्रकार आचार्यश्री ने इन पक्तियों में आत्मा के परमात्म स्वरूप को समझाने के सुन्दर रूपक योजना प्रस्तुत की है जैसे एक मृगी हरिणी माता का प्रतीक परमात्मा शिशी मुन्द्र बच्चा - आत्मा मिर-विषय-कपाय
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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