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________________ का सरिचय ३३ परम तत्त्व के अनुसधान ने तने पर होंगे बाते इ समाधान इस श्लोक का नरनार्य करता है प्रथम जिनपादयुग सम्यक् प्रणन्य, अहं तोये प्रथम सम्यक् प्रणाम करके (फिर बाद में) ने भी लुति जिन चरणो ने प्रथम ननस्कार करते हैं। ये चरन युक्त कैसे हैं ? उन परफ्युमन क स्वरूप परिचय, वर्णन, विशिष्टता, नहत्त्व और परिमान यहाँ प्रस्तुत है १ भक्तामर प्रणतमालिमणिप्रभाणामुद्योतकम् भक्त देवो के प्रकृष्ट भाव से नने हुए नुकुटों के नपियों की कन्ति के उद्यत (कारो) को करने वाले, २ दलितपापतमोवितानम् पापरूपी तमस् अर्थात् अन्धकार के विस्तार को, तनूह को नष्ट करने वाले, ३ भवजले पतता जनानाम् आलम्बनम् ससार रूपी सागर के अर्थात् जल ने पडे हुए-गिरते हुए ननुष्यों के आलवन रूप, आधारभूत । जिन चरणों में नमस्कार कर रहे हैं और जिनकी हम स्तुति करने जा रहे हैं, वे कौन हैं ? कैसे हैं? सकलवाङ्मयतत्त्वबोधात् उद्भूतबुद्धिपटुभि सुरलोकनाथ जगत्त्रितयचित्तहरै उदारे स्तोत्र यसस्तुत युगादी ส प्रथम जिनेन्द्रम् किल अहं अपि तोप्पे समस्त शास्त्रों के तत्त्वज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि से चतुर- ऐसे देवेन्द्रो द्वारा तीनो जगत् के चित्त को हरण करने वाले ऐसे - उत्कृष्ट गभीर अर्थवाले स्तोत्रो - स्तवनों के द्वारा जो सम्यक् स्तवन के पात्र हैं, युग की आदि मे उन प्रथम तीर्थंकर की निश्चय से मैं भी स्तुति करूंगा
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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