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________________ प्रतीक १३९ जीवन की आशा आयुष्य कर्म है। अधाति कर्मों ने इसे भी स्थान दिया है क्योकि यह भी मोक्ष मे बाधक होता है। यहाँ वेदनीय की प्रधानता मे जीवन मृत्यु का रहस्य बताकर रोग मुक्ति का उपाय परनाला के चरणों को बताया है। प्रत्येक गंगो का मूलाधार पेट माना जाता है अत यहाँ इसकी प्रधानता । निरोगिता या कम रहितता की अवस्था प्राप्ति की सफलता दर्शायी है। साथ ही इसमें जलादर से अतिरिक्त दो और भी अवस्थाएं चित्रित की है१ शोच्या दशामुपगता -याने किसी भी चिन्ना की अवस्था को प्राप्त आर २ च्युतजीविताशा - जिसके जीने की जाशा समाप्त हो चुकी है ऐसा भी मानव । प्रधन जलोदर से दहिक रोग से, दूसरे कि रोग से और तीसरे में जीवन से सम्बन्धित समस्या में भी परवाला का सारण एक विशेष समाधान की दिशा प्रदान करता ह। अब अंतिम कम की प्रधानता का परिलन्ति करते हुए कहा हे आपादकण्ट-मुरुशृङ्खल-वेष्टिताना, गाढ बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजा । त्वन्नाममन्त्रमनिश मनुजा स्मरन्त सद्य स्वय विगतवन्धभया भवन्ति ॥ ४६ ॥ आपादकण्टम् उरुशृखलवेष्टितागा गाढम् वृहन्निगडकोटिनिघृष्टजघा मनुजा त्वन्नाममन्त्रम् अनिशम् स्मरन्त सध स्वयम् विगतबन्धभया भवन्ति - - - - (पेरी) से लेकर (गले) तक लम्बी चौड़ी बड़ी-बड़ी दृढ़ साकलो से-जजीरो से जकड़ दिया है शरीर का अग अग जिनका ऐसे, खून अधिक मजबूत रूप से बड़ी-बड़ी बेड़ियो तथा लौह शृङ्खलाओ के अग्रभाग से किनारो से रगड़ कर छिल गई हैं जघाये जिनकी ऐसे मनुष्य आपके नाम रूपी मन्त्र को निरन्तर (सतत - अन्तराल रहित - अनवरत ) स्मरण करते हुए (जपते हुए) तत्काल अति शीघ्र अपने आप - खुद-ब-खुद बन्धन के भय से सर्वथां रहित हो जाते हैं।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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