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________________ १३४ भक्तामर स्तोत्र . एक दिव्य दृष्टि आपके नाम रूपी नागदमनी ( है वह मनुष्य ) शका रहित होता हुआ लाल आँखो वाले उन्मत्त कोयल के कण्ठ के समान काले क्रोध से उद्ध सामने आते हुए ऊपर की ओर फन उठाये हुए सर्प को दोनो पैरो से लॉघ जाता है। एक विशेष सर्प से हम आतकित हैं, पीडित हैं। जब तक वह सर्प वश मे नही होगा हर समय उसके द्वारा डसने की भय / आशका बनी रहती है। साधना के लिये कदम बढ़ाते साधक को यह कैसी विचित्र चुनौती है ? यह तो मार्ग मे फन उठाये बैठा है। उसका उल्लघन कैसे सभव हो सकता है ? त्वन्नामनागदमनी निरस्तशङ्क रक्तेक्षणम् समदकोकिलकण्ठनीलम् क्रोधोद्धतम् आपतन्तम् उत्कणम् फणिनम् क्रमयुगेन आक्रामति - - - - - - नागदमनी होती है जो सर्प को वश मे करती है, उसका दमन करती है। यह एक जडी विशेष है। परमात्मा का नाम एक ऐसी नागदमनी है जो ज्ञानावरणीय जैसे विकराल फणिधर को भी वश मे कर लेती है। परमात्मा के नाम-स्मरण से साधक इस भय का उल्लघन कर अपना पथ प्रशस्त कर सकता है। सर्प क्रोध और लोभ का भी प्रतीक है। सामान्यत ऐसा माना जाता है कि जिनकी धनादि मे अधिक मूर्च्छा होती है वे मरकर सर्प होते हैं। पूर्वकाल मे कई ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जिनमे धनादि के स्थान पर सर्प कुडली मारकर बैठा रहता है और उसे किसी को भी नही छूने देता है। इस प्रकार यह क्रोध का भी प्रतीक माना है । स्पष्टत प्रस्तुत श्लोक मे सर्प वर्णन मे क्रोधी व्यक्ति को चित्रित किया हुआ भी पा सकते हैं। चंडकौशिक सर्प के आख्यान मे इसे पूर्वजन्म में तापस होने और क्रोध में मृत्यु हो जाने पर सर्प होने की कथा भी लोक प्रचलित है। सर्प चाहे क्रोध का, चाहे लोभ का, चाहे ज्ञानावरणीय कर्म का प्रतीक मानें पर यह निश्चित है कि परमात्मा के नाम स्मरण से हम इसे उल्लघ सकते हैं। इस प्रकार मोहनीय कर्मप्रधान घातिकर्म का वर्णन यहाँ समाप्त होता है।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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