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________________ प्रतीक १२९ परिणमित करने में समर्थ है फिर भी कृतकृत्य ऐसे परम पुरुष में सम्पूर्ण वीतराग स्वभाव होने पर उसका उपयोग असंभव है। उपदेशादि के दानरूप उनकी प्रवृत्ति पूर्वबध के उदयमान परिणामों से योगाश्रित होती है। पद्यों के दो विभाग हैं- प्रथम विभाग में कथित चार श्लोक इन चार घातिकर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और शेष पाच पद्य अघातिकर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। घातिकर्म मे प्रधान मोहनीयकर्म है और अघातिकर्म में प्रधान वेदनीय कर्म है। इन दोनो कर्मों का प्रतिनिधित्व कर यह घाति अघाति का भेद स्पष्ट करता है। प्रथम विभाग में बताया गया है कि परमात्मा का नाम स्मरण करने से आने वाले उपसर्ग रुक जाते हैं और शेष पाच पद्यों मे कहा है कि आने वाले उपसर्गों से परमात्मा का स्मरण पार उतार देता है। यहाँ जो अन्तर है वही घाति अघाति का स्पष्टीकरण है। घातिकर्म आत्मा जब चाहे तब तोड़ सकता है, रोक सकता है। घातिकर्म देहस्पर्शी ही नहीं आत्मस्पर्शी भी होते हैं। प्रथम चार उपसर्गों में भय बताया जाएगा जो आत्मा के भावों का स्पर्श करता है। जब कि शेष श्लोकों में सग्राम, वाडवाग्नि, रोग, जजीर बधन ये शरीरस्पर्शी हैं। ये वेदनाप्रधान हैं। अघातिकर्म भोगने ही पड़ते हैं। ये न तो सर्वथा रोके जाते हैं और न इनका सर्वथा क्षय होता है। अघातिकर्म में वेदनीय मुख्य है और अन्य आयुष्य, नाम और गोत्र भी इसमें सम्मिलित हैं । यहाँ अब इन कर्मों का स्वरूप विभिन्न प्रतीको के माध्यम से बताया जाएगा। और वे श्लोक सर्व कर्मों के प्रतीक बन, कर्मक्षय के उपाय प्रस्तुत कर मोक्षमार्ग का नेतृत्व करेंगे। समस्त घातिकर्म का नेतृत्व करते हुए एक मदोन्मत्त हाथी को काम, मान और अन्तरायकर्म का प्रतीक बताते हुए आचार्य श्री कहते हैंश्च्योतन्मदाविल-विलोल - कपोलमूल मत्तभ्रमद् भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धत - मापतन्त, दृष्ट्वा भय भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥३८॥ आपके शरणागत पुरुषों को भवदाश्रितानाम् श्च्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल मत्तभ्रमद्भ्रमरनादविवृद्धकोपम् ऐरावताभम् उद्धतम् - झरते हुए मद-जल से जिसके गण्डस्थल ( गण्ड प्रदेश) मलीन हो रहे हैं और जिन पर मँडराते हुए चचल-मत्त भौंरे अपने गुअन से जिसका क्रोध बढ़ा रहे हैं ऐसे ऐरावत हाथी के समान आकार वाले उद्दण्ड, 'अवश
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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