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________________ मनुस्मृति को सूक्तियो ७. विना पूछे किसी के बीच मे व्यर्थ नही बोलना चाहिए । दो सौ इक्यासी ८. जो सदा वृद्धो ( ज्ञानवृद्ध श्रादि गुरुजनो) का अभिवादन करता है तथा उनकी निकटता से सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बलये चारो निरन्तर बढते रहते हैं । ६. घन, बन्धु, आयु, कर्म एवं विद्या - ये पाँचो सम्मान के स्थान है। किंतु इनमें क्रमश. एक से दूसरा स्थान उत्तरोत्तर श्रेष्ठ माना गया है । १०. दश उपाध्यायो से एक माचार्य महान है, सो आचार्यों से एक पिता और हजार पिताओ से एक माता का गौरव अधिक है । ११ बस्तुत. अज्ञ ( मूखं ) हो बाल है, प्रल्पवयस्क नही । १२. शिर के बाल पक जाने से ही कोई वृद्ध नही माना जाता है। जो युवावस्था में भी विद्वान है उसे देवताओ ने स्थविर माना है । १३. महिंसा की भावना से अनुप्राणित रहकर ही प्राणियों पर अनुशासन, करना चाहिए । १४. धर्म को इच्छा करने वाले को चाहिए कि वह माधुयं ओर स्नेह से - युक्त वाणी का प्रयोग करें । १५. साधक को कोई कितना ही क्यो न कष्ट दे, किन्तु वह विरोधी की हृदयवेषक किसी गुप्त ममं को प्रकट न करे, और न दूसरो के द्रोह का ही कभी विचार करे । १६. विद्वान् सम्मान को विष की तरह समझ कर सदा उससे डरता रहे । १७. अपमान करने वाला अपने पाप से स्वय नष्ट हो जाता है ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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