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________________ वाल्मीकि रामायण की मूक्तिया दो सौ उनतीस ६ सत्य हो एकमात्र ब्रह्म है, सत्य हो मे घम प्रतिष्ठित है । ७. (राम का कैकेयी से कथन)"पिता की सेवा और उनके वचनो का पालन करना, इस से बढ कर पुत्र के लिए और कोई धर्माचरण नहीं है ।" ८. (लक्ष्मण का राम से कथन) जो कातर और निर्बल हैं, वे ही देव (भाग्य) का आश्रय लेते हैं । वीर और आत्मनिष्ठ पुरुष देव की ओर कभी नही देखते । है जो अपने पुरुषार्थ से देव को प्रवाधित (मजवूर) कर देने में समर्थ हैं, वे मनुष्य दैवी विपत्तियो से कभी अवसन्न (खिन्न, दुखित) नहीं होते हैं । १०. पतिव्रता स्त्री एकमात्र पति को सेवा-शुश्रूपा से ही श्रेष्ठ स्वर्ग को प्राप्त कर लेती है। ११. नोम से कभी मघु (शहद) नही टपक सकता है। १२ (राम के साथ वन मे जाते समय लक्ष्मण को सुमित्रा की शिक्षा) हे पुत्र । राम को दशरथ के तुल्य, सीता को मेरे (माता सुमित्रा) समान और वन को अयोध्या की तरह समझ कर आनन्दपूर्वक वन मे जाओ । ___ जो व्यक्ति फल (परिणाम) का विचार किए बिना कर्म करने लग जाता है, वह फल के समय मे ऐसे ही पछताता है जैसे कि सुन्दर लाल-लाल फूलो को देख कर सुन्दर फलो की आकाक्षा से ढाक की सेवा करने वाला मूढ मनुष्य । चित्त के विमूढ हो जाने पर इन्द्रियाँ भी अपने कार्यों मे भ्रान्त हो जाती हैं, अर्थात् चित्त के नष्ट होने पर इन्द्रियां भी वैसे ही नष्ट हो जाती हैं जैसे कि स्नेह (तेल) के क्षीण होने पर दीपक की प्रकाशकिरणें । १५. राजा के अर्थात् योग्य शासक के न होने पर राष्ट्र मे कोई किसी का अपना नही होता । सब लोग हमेशा एक दूसरे को खाने में लगे रहते हैं, जैसे कि मछलिया परस्पर एक दूसरे को निगलती रहती हैं।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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