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________________ उपनिषद् साहित्य को सूक्तिया दो सौ ग्यारह ७६ जो व्यक्ति खाता है, पीता है, परन्तु इनमे रम नही जाता, उसका जीवन 'दीक्षा' का जीवन है । ७७. जो व्यक्ति तप, दान, ऋजुता, अहिंसा और सत्यवचन में जीवन व्यतीत करता है, उसका जीवन 'दक्षिणा' का जीवन है। ७८. आचार्य से सीखी हुई विद्या ही सबसे उत्तम एवं फलप्रद होती है। ___७६ यह आत्मा 'वामनो' है, क्योकि सृष्टि के सभी सौन्दर्यों का यह आत्मा नेता है, अग्रणी है। ____८०. यह आत्मा 'भामनी' है, क्योकि यह आत्मा हो समग्र लोको मे अपनी आभा से प्रकाशमान होरहा है । ८१. ब्रह्मा (नेता) के लिए यह गाथा प्रसिद्ध है कि जहां से भी हताश-निराश होकर कोई व्यक्ति वापस लौटने लगता है, अर्थात् लक्ष्यभ्रष्ट होता है, वहां वह अवश्य ही सहायता के लिए पहुँच जाता है । ८२. जो ज्येष्ठ (महान्) तथा श्रेष्ठ (उत्तम) की उपासना करता है, वह स्वय भी ज्येष्ठ और श्रेष्ठ हो जाता है । ८३ श्रोत्र सबसे बडी सम्पत्ति है, क्योकि संसार मे सुनने वाला ही समय पर कुछ कर सकता है । ८४ अच्छे आचरण वाले अच्छी योनि मे जाते हैं । और बुरे आचरण वाले दुरी योनि में जाते हैं। ८५ जीव से रहित शरीर ही मरता है, जीव नही मरता । ८६. जो आत्मा को-अपने आप को जान जाता है, वह दु खसागर को तैर जाता है। ८७ यदि वाणी न होती तो न धर्म-अधर्म का ज्ञान होता, न सत्य-असत्य का ज्ञान होता, और न भले-बुरे की ही कुछ पहचान होती।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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