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________________ एक सौ सडसठ ब्राह्मण साहित्य को सूक्तियां १२१. पली सखा (मित्र) है। १२२. पुत्र घर को ज्योति है । १२३. श्रम नहीं करने वाले को समाज में श्री (शोभा) नहीं होती। अथवा श्रमहीन मालती को श्री (लक्ष्मी) प्राप्त नहीं होती। १२४ निठल्ला बैठा रहकर खानेवाला श्रेष्ठ जन भी पापी है । १२५. इन्द्र (ईश्वर) भी चलने वाले का गर्थात् श्रम करने वाले का ही मित्र (सहायक) होता है। १२६. चलते रहनेवाले पर्यटक की जघाएं पुष्पिणी हो जाती हैं, सुगधित पुष्प के समान सर्वत्र निर्माण का सौरभ फैलाती हैं, आदर पाती हैं । चलते रहने वाले का जीवन वर्धिष्णु (निरन्तर विकाशशील) एव फलनहि (आरोग्य आदि फल से युक्त) होता है। चलने वाले के सब पापदोष मार्ग मे ही श्रम से विनष्ट होकर गिर जाते है। चले चलो.... चले चलो....! १२७. बैठे हुए का भाग्य बैठा रहता है, उठता या बढता नही । उठ कर खडे होनेवाले का भाग्य उन्नति के लिए उठखडा होता है । जो आलसी भूमि पर सोया पड़ा रहता है, उसका भाग्य भी सोता रहता है, जागता नही है। जो देश देशान्तर में अर्जन के लिए चल पडता है, उसका भाग्य भी चल पडता है, दिन-दिन बढता जाता है। चले चलो.... चले चलो...!
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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