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________________ ब्राह्मण साहित्य को सूक्तियां एक सौ तिरेसठ १०० अन्धकार (अज्ञान) पाप है । १०१. वाणी भी एक प्रकार की अग्नि है । १०२. तू अभय को खोज कर । १०३. शिल्प (कला) प्रात्मा के सस्कार हैं, अतः शिल्प मनुष्य की आत्मा को सस्कारित करते हैं। १०४. जो तपता है, अपने योग्य कर्म मे जी जान से जुटा रहता है, वही संसार मे प्रशसित होता है। १०५. विश्व मे अन्न ही विराट् तत्त्व है । १०६. ऋत (मानसिक सत्यसंकल्प) ही दीक्षा है, सत्य (वाचिक सत्य भाषण) ही दीक्षा है, अत. दीक्षित (साधक) को सत्य ही वोलना चाहिए। १०७. दिष्य आत्माएं सत्यसहित होती हैं, अर्थात् उनके प्रत्येक वचन का तात्पर्य सत्य से सम्बन्धित होता है । १०८. चक्षु हो विचक्षण है, क्योकि चक्षु के द्वारा ही वस्तुतत्व का यथार्थ दर्शन एवं कथन होता है । १०६. विचक्षण अर्थात् आँखो देखा (अनुभूत) वचन ही वोलना चाहिए, क्योकि ऐसा वचन हो सत्य होता है । १. मनसा यथावस्तु चिन्तनमृतशब्दाभिधेयम् । २. वाचा यथावस्तु कथन सस्यशब्दाभिधेयम् । ३. चक्षिड् दर्शने, इत्यस्माद् धातोरय शब्दो निष्पन्नः । तथा ससि विशेषेण वस्तुतत्त्वमेनेनाऽऽचष्टे पश्यतीति विचक्षणं नेत्रम् ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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