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________________ एक सौ बासठ सूक्ति त्रिवेणी १००. तमः पाप्मा। गो० प्रा०-२॥५॥३ १०१ या वाक् सोऽग्निः । -२।४।११ १०२. अभयमिव ह्यन्विच्छ । -२०६४ १०३ आत्मसस्कृति , शिल्पानि, आत्मानमेवास्य तत्सस्कुर्वन्ति । -२०६७ १०४ यो ऽसौ तपति स वै शंसति । -२।६।१४ १०५ अन्नं वै विराट् । ---*ऐतरेय ब्राह्मण ११६ १०६, ऋत' वाव दीक्षा, सत्यं दीक्षा, तस्माद् दीक्षितेन सत्यमेव वदितव्यम् । १०७. सत्यसंहिता वै देवा । १०८. चक्षु वै विचक्षणम्, वि ह्येनेन पश्यति । १०६ विचक्षणवतीमेव वाच वदेत्, सत्योत्तरा हैवास्य वागुदिता भवति । * ऐतरेय ब्राह्मण आनन्दाश्रम मुद्रणालय, पूना द्वारा प्रकाशित (ई० स० १६३०) सस्करण । -ऐ० प्रा० के समस्त टिप्पण सायणाचार्यविरचित भाष्य के है। -अंक क्रमश अध्याय तथा खण्ड के सूचक हैं ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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