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________________ एक सौ सत्तावन ब्राह्मण साहित्य को सूक्तियां ६६ सत्य मेरा आत्मा (सहज स्वभाव) है । ६७ मेरी श्रद्धा अक्षय हो । ६८ तप मेरी प्रतिष्ठा है, मेरी स्थिरता का हेतु है । ६६ असत्य कुटिलता से किया जाने वाला दुश्चरित पाप है । और सत्य सरलता से किया जाने वाला सुचरित पुण्य है । ७० वेव (ज्ञान) अनन्त है । ७१ श्रद्धा से ही देव देवत्व प्राप्त करते है, श्रद्धा देवी ही विश्व की प्रतिष्ठा है-आधारशिला है। ७२ श्रद्धा देवी ही सत्यस्वरूप ब्रह्म से सर्वप्रथम उत्पन्न हुई है। ७३. समय विश्व मन के वश मे है । ७४. ज्ञानी पुरुष अज्ञान से आक्रान्त नही होता, और जो अज्ञान से आक्रान्त. है वह सत्य को नही जान पाता । ७५. पापात्मा श्रेष्ठजनो को अतिक्रान्त नही कर सकता। ७६. मनुष्य देवो का ग्राम है अर्थात् निवासस्थान है। -ताण्ड्यमहामाह्मण के समस्त टिप्पण सायणाचार्यविरचित भाष्य * अक क्रमश अध्याय, खण्ड एवं कण्डिका के सूचक हैं।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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