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________________ सत्तानवे यजुर्वेद की सूक्तियां १०६. परमचैतन्य परमेश्वर की कोई उपमा नही है । ११०. सृष्टि के रहस्य को जानने वाला ज्ञानी हृदय की गुप्त गुहा मे स्थित उस सत्य अर्थात् नित्य ब्रह्म को देखता है, जिसमे यह विश्व एक मुद्र नीड (घोसला) जैसा है। १११. जो आत्मा ब्रह्म का साक्षात्कार करता है, वह अज्ञान से छूटते ही ब्रह्म रूप हो जाता है । वस्तुतः वह ब्रह्म ही है। ११२ ये ब्राह्मण और क्षत्रिय अर्थात् ज्ञान और कर्म की उपासना करने वाले दोनो मेरी श्री (ऐश्वर्य) का उपभोग करें। ११३. ज्ञानी जन हम सब के प्रीति पात्र हो । ११४. धन से चिपटा रहने वाला अदानशील व्यक्ति समाज का शत्रु है । ११५. ज्योति से ही अन्धकार नष्ट होता है । ११६ यह विना पर की उषा पैरो वालो से पहले आ जाती है । अथवा विश्व मे यह बिना पदो की गद्य वाणी पद्य वाणी से पहले प्रकट हुई है। ११७. जो विज्ञानात्मा का ग्रहण करने वाला होने से देव है, जो जाग्रत अवस्था मे इन्द्रियो की अपेक्षा दूर जाता है, उसी प्रकार स्वप्न में भी जो अतीत, अनागत प्रादि मे दूर तक जाने वाला है, और जो श्रोत्र आदि ज्योतिर्मती इन्द्रियो मे एक अद्वितीय ज्योति है, वह मेरा मन पवित्र सकल्पो से युक्त हो । महीधर । ६. यद्वा वाक्पक्षेऽर्थ.....अपाद् पादरहिता गद्यात्मिका त्रयीलक्षणेय वाक्-महीधर ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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