SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यजुर्वेद की सूक्तियां तिरासी ५६ सभी सभाग्रो ( लोकहितकारी सगठन) और सभापतियो को हमारा नमस्कार है । ५७. राष्ट्ररक्षक सेनाओ और सेनापतियों को नमस्कार है । ५८ छोटे बड़े सभी को नमस्कार है । ५६. शिल्पविद्या के विशेषज्ञ, रथकार ( याननिर्माता), कुलाल (कुम्हार) एवं कर्मार ( लुहार ) - सभी को नमस्कार है । ६०. वडो को नमस्कार है, छोटो को नमस्कार है, तथा भूत, भविष्य एव वर्तमान के सभी श्रेष्ठ जनो को नमस्कार है । ६१. हे वीरपुरुषो । दृढ़ता के साथ आगे बढो, विजय प्राप्त करो । इन्द्र ( तुम्हारा आत्मचैतन्य ) तुम्हारा कल्याण करे, तुम्हारी भुजाएँ अत्यत प्रचण्ड पराक्रम शाली हो, ताकि कोई भी प्रतिद्वन्द्वी शत्रु तुम्हें तिरस्कृत न करने पाए । ६२ जो ज्ञान एव कर्म के समन्वयकारी विद्वान् विश्व के धारण करने वाले सत्कर्मरूप यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, वे स्वर्ग लोक मे गमन करते हुए शोकरहित दिव्य स्थिति को प्राप्त होते हैं, उन्हे फिर किसी की अपेक्षा नही रहती है । ६३ श्रद्धा के जल से आप्लुत चिन्तनशील हृदयरूपी समुद्र से सैकडो ही अर्थरूप गतियो से युक्त वाणियाँ निकलती हैं, जो घृत-धारा के समान अवि उद्गच्छन्ति....श्रद्धोदक प्लुतादेव... याथात्म्य चिन्तनसन्तान गर्भात् शक्या. अन्ति ६ बहुगतयो बह्वर्था । ७ कुताकि रूपशत्रु संघातेन नापवदितु उव्वट । -
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy