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________________ यजुर्वेद की सूक्तिया सतहत्तर २६ मैं माता पृथिवी को नमस्कार करता हूँ, मै माता पृथिवी को नमस्कार करता हूँ। २७ हम राष्ट्र के लिए सदा जाग्रत (अप्रमत्त) रहे । २८ हे पृथिवी माता, न तू मेरी हिंसा कर और न मैं तेरी हिंसा करूं। २६ विश्व के स्रष्टा दिव्य आत्माओ की प्राज्ञा मे रहने वाले हम, एकाग्र मन से पूरी शक्ति के साथ, स्वर्ग (अभ्युदय) के साधक सत्कर्म करने के लिए प्रयत्नशील रहे। ३०. अमृत (अविनाशी ईश्वर) के पुत्र सभी लोग सत्य का सन्देश श्रवण करें। ३१. ज्ञान के शोधक श्रेष्ठ विद्वान हमारे ज्ञान को पवित्र एव स्वच्छ बनाएं, वाणी के अधिपति विद्वान् हमारी वाणी को मधुर एवं रोचक बनाएँ। ३२. क्षोमरहित प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए । ३३. समाज के अग्रणी नेता को पवित्र जिह्वा वाला और हजारो का पालन पोषण करने वाला होना चाहिए। ३४ मेरा ब्रह्म (ज्ञान) तीक्ष्ण है, मेरा वीर्य (इन्द्रिय शक्ति) और बल (शरीर शक्ति) भी तीक्ष्ण है अर्थात् अपना-अपना कार्य करने में सक्षम हैं । मैं जिस का पुरोहित (नेता) होता हूँ उसका क्षत्र (कर्म शक्ति) भी विजय, शील हो जाता है। ६. सम्यक् तीक्ष्णीकृतम् । ७. वीयंमिन्द्रियशक्तिः, बल शरीरशक्तिः, तदुभय स्वकार्यक्षमं कृतम्-महीधर ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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