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________________ दीघनिकाय को सूक्तियां नौ २६. अतिनिद्रा, परस्त्रीगमन, लड़ना-झगडना, अनर्थ करना, बुरे लोगो की मित्रता और अति कृपणता-ये छह दोप मनुष्य को वर्वाद करने वाले २७. जो नीच पुरुषो के सग रहते हैं, ज्ञानी जनो का सत्सग नहीं करते, वे कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा के समान निरन्तर हीन (क्षीण) होते जाते है। २८. जो दिन मे सोता रहता है, रात मे उठने से घबराता है, और हमेशा नशे मे धुत रहता है, वह घरगृहस्थी नहीं चला सकता। २६. आज बहुत सर्दी है, आज वहुत गर्मी है, अब तो वहुत सन्ध्या ( देर ) हो गई,-इस प्रकार कर्तव्य से दूर भागता हुआ मनुष्य धनहीन दरिद्र हो जाता है । ३०. जो व्यक्ति काम करते समय सर्दी-गर्मी को तिनके से अधिक महत्व नही देता, वह कभी सुख से वचित नहीं होता। ३१, दुष्ट मित्र सामने प्रशंसा करता है, पीठ पीछे निन्दा करता है। ३२. उपकार करने वाला मित्र सुहृद् होता है, सुख दुःख मे समान भाव से साथ रहने वाला मित्र सुहृद् होता है । ३३. सदाचारी पडित प्रज्वलित अग्नि की भाँति प्रकाशमान होता है । ३४, जैसे कि मधु जुटाने वाली मधुमक्खी का छत्ता बढता है, जैसे कि वल्मीक बढ़ता है, वैसे ही धर्मानुसार कमाने वाले का ऐश्वयं बढता है।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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