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________________ बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र ५५ शीघ्र पोस्टेज की वी. पी. करके भेजने का प्रबन्ध कर दीजियेगा ज्यादा शुभ सं० १९८२ आषाढ शुक्ल ४ आपका कृपा कटाक्षाकांक्षी पूरणचन्द नाहर की वन्दना अवधारिएगा। नोट-मेरे पर लेश मात्र भी कृपा कर लेख शीघ्र ही भेज दीजियेगा । मैं आपका आजन्म आभारी रहूँगा । पूर्व में आबू के लेख भी ले गये हैं वे सब आपके यहां छप गये है। यहाँ आर. डी. बनर्जी भी हैं वे भी मथुरा के लेख प्रकाशित करने के लिए बहुत कह रहे है । परन्तु मैं जब तक आप मेरे लेख लौटा कर नहीं भेजें, उनको कोई उत्तर नहीं दे सकता हूँ, बनर्जी सा. मुझे और भी इस विषय में सहायता देने को तैयार हैं । यह अवसर छोडने से मुझे बड़ा ही कष्ट होगा । मैंने आपका आज्ञाकृत कोई अपराध नहीं किया है फिर मेरे पर ऐसा गुरु दड नहीं देना चाहिये । लेख अवश्य भेजियेगा, ज्यादा कुछ और लिखने का नही है सब हाल निवेदन कर दिया, ज्यादा शुभम् । -~-पूरणचन्द (११) Calcutta 4-7-1925 परम् पूज्यवर आचार्य महाराज श्री जिनविजयजी महाराज की पवित्र सेवा मे लि० पूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना के पश्चात् निवेदन है कि आज दिन महाराज के कर कमलो से लिखी हुई कृपा पत्रिका पढ़कर मेरे चित्त में बहुत ही शान्ति और आनन्द प्राप्त हुआ है । आप जैसे महापुरुष के हृदय मे मेरे जैसे तुच्छ श्रावक पर जैसी धारणा आपने पत्र में लिखी है, वह आपके उदार विचारो की ही
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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