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________________ ५६ मेरे दिवगत मित्रों के कुछ पत्र द्योतक है । मैं उन सबके योग्य नहीं हैं। मैंने ही स्वयं मेरे चित्त की व्यग्रतावश मेरे पूर्व पत्रों में कुछ रूढ़ शब्दो का प्रयोग किया हो तो मेरा अपराध क्षमा कर दीजियेगा। मथुरा के लेखो के विषय में इतना ही निवेदन करना है कि उन सभी को आप अहमदाबाद पहुंचते ही खोज कर मेरे पास भेजने का प्रबन्ध कर दीजियेगा । आपको अधिक लिखना निश्प्रयोजन है जहाँ तक शीघ्र होस मेरे रखे हुए लेख पुस्तक अनुवाद वगैरह मिलने के साथ भेजने की कृपा कीजियेगा। पूना से पुरातत्त्व मन्दिर जाने का भी शीघ्र विचार रखियेगा। आगे आपके पत्र के कवर मे किसी भ्रम से कुछ postage stamp रह गये थे सो इस पत्र के साथ भेजते है, लीजियेगा । ___आपको एक कष्ट देने की धृष्टता करता हूँ। मेरे सग्रह में Bombay Branch Royal A. S. के Journal की कुछ Vol. अपूर्ण है उनकी लिस्ट नीचे लिखी है । वे सख्या मे यदि वहाँ किसी जगह किसी के पास मिल सके तो मैं अच्छी कीमत देकर लेने को तैयार हूँ। The Oriental Books Supply agancy वगैरह मे खोज करने से कुछ मिल सके । स्मरण रखकर इनकी पूर्ति करवा देने का प्रयत्न रखियेगा मेरे योग्य सेवा लिखें ज्यादा शुभ सं. १६६२ मि. आषाढ शु. १३ । पूरणचन्द नाहर (१२) Calcutta 20-8-1925 परम श्रद्धास्पद पूज्य वर आचार्य महाराज श्री जिनविजयजी की सेवा में लि० पूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना अवधारिएगा। अन कुगल तवास्तु । अपरंच निवेदन है कि कृपा पत्र हस्तगत हुआ, प्रथम पार्सल की रसीद मिली। पार्सल रेल से मगवाली गयी है। मथुरा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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