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________________ ૫૪ मेरे दिवगत मित्रों के कुछ पत्र पुरुपो की ही लेखनी से इसकी समुचित समालोचना होना कर्तव्य है । अधिक क्या लिखूं, किसमें प्रकाशित करें सूचना देकर कृतार्थ कीजियेगा । मथुरा की Vol. के लिये मुझे विशेष चिन्ता सदा रहती है । अब आप अवश्य कृपा करें नही तो मैं सब कार्य छोड़कर इसको प्रकाशित करने मे तत्पर होने की इच्छा रखता हूँ । अब आप दयाद्र होकर मेरे निवेदन को स्वीकार कर पत्रोत्तर देकर चित्त को शान्ति देवें ज्यादा क्या लिखू 1 द : सेवक पुरणचन्द की वन्दना पहुँचे । ( १० ) Calcutta 25-6-1925 परम पूजनीय विद्वद्वर्थं श्रीमान मुनि महाराज श्री जिनविजयजी की पवित्र सेवा मे लिखी पूरण चन्द्र नाहर की सविनय वन्दना अवधारिएगा | यहाँ श्री जिन धर्म के प्रसाद से कुगल है महाराज की सुख साता सदा चाहते हैं । अपरच मेरे कोई पूर्व सचित अशुभ कर्म के योग से महाराज की सेवा मे कई पत्र ताकीद भेजने पर भी अद्यावधि कोई प्रत्युत्तर से वंचित है । मैंने यहा मेरे मकान पर ही प्रेस खोलकर जैन लेख संग्रह का दूसरा भाग छपवाना आरम्भ कर दिया है । और ३५, ३६ फार्म छप भी गया है । उसी सग्रह मे मथुरा के लेखो को भी प्रकाशित करने की प्रबल इच्छा है । अब मेरे पर किंचित मात्र भी दया विचार कर आपके पास जो मैं हिन्दी अनुवाद सहित मथुरा के लेख रख आया था वे अति शीघ्र भेज दीजियेगा । विलम्ब से आपको कुछ लाभ नही होगा, परन्तु मेरा परिश्रम प्रकाशित न होने से व्यर्थ ही जायगा | आपको वारम्बार इस विषय में लिख कर कष्ट दे रहे है । इसी का हमें पूरा ख्याल है, आज में यह पत्र पूरी आशा बाँधकर लिखता हूँ और वारम्बार यही विनती है कि मेरे मथुरा के लेख अति
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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