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________________ बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र (ह) Calcutta 5-8-1924 ५३ परम पूज्यवर श्री १००८ श्री मुनि जिनविजयजी आचार्य महोदय की पवित्र सेवा मे लिखी पूरणचन्द नाहर की सविनय बन्दना के पश्चात् निवेदन है कि इधर बहुत काल व्यतीत हुआ कि महाराज की तरफ से कोई सवाद नही मिला । यह मेरे दुर्भाग्य का ही कारण है । यदि मेरे से कोई जाने अनजाने त्रुटि हुई हो तो निज गुण से क्षमा कर पत्रोत्तर की कृपा करके कृतार्थ करने से मेरा कुछ पुण्य है ऐसी धारणा से आगे पर उत्साह वर्धित होता रहेगा । प्राज पुनः कष्ट देने का हेतु यह है कि यहाँ के श्री राजगृह तीर्थ पर भी दिगम्बरी लोगो से केस छिड गया है । इस विषय मे मेरे पास अपने श्री श्वेताम्बरी कार्यकर्त्ता लोग कई दफा आये । मैंने आपको पत्र देने को कहा, परन्तु वे लोग यह भार मुझको ही दे गये । विषय है कि अपने कौन-कौन प्राचीन पुस्तको में राज गिरि और उसके पांचो पहाडो का वर्णन है । उसके नाम और स्थान लिखने की कृपा करें । मूर्तियो के विषय मे मथुरा के मूर्ति और लेखो से भी पूरी सहायता समझते है । सो इस समय यदि आप शीघ्र प्रकाशित करने का प्रबन्ध करें तो बहुत ठीक होगा। चाहे आप कापी बनवाकर मेरे पास भेजें तो मैं यहाँ छपवाकर और प्लेट बनवाने का प्रबन्ध करलूं आपको केवल final proofs भेजा करूँ । अनवकाश हेतु यदि आप अशक्य हो तो कृपया अब विलम्ब नही करके अति शीघ्र जो कुछ मेरी दी हुई और आपके पास की सब कापियाँ मेरे पास भेज देवें । इस विषय का पूरा ताकीद जानिये । सुज्ञेपु किं बहुना । अपरच हाल ही में दिगम्बरी पं० कामता प्रसादजी ने सूरत से 'भगवान महावीर' नामक तुलनात्मक पुस्तक छपवाई है । आपने देखी होगी । इसमे श्वेताम्बर आम्नाय की उत्पत्ति पर जो कुछ लिखा है अवश्यावलोकन कीजिएगा । मेरे विचार से बहुत पक्षपात से लिखा है । आपके ऐसे योग्य महा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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