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________________ ५२ मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र हैं, छपवा दूँ । आप जैसा लिखें वैसा करूँगा । पत्रोत्तर शीघ्र देने की कृपा करे । 'किंबहुना ज्यादा' शुभम् । द : पुररणचन्द नाहर की वन्दना (5) Calcutta 27-2-1924 परम पूज्यवर आचार्य महाराज श्री मुनि जिनविजय जी महाराज की पवित्र सेवा मे लिखि पूरणचन्द नाहर की वन्दना अवधारिएगा यहा कुशल है । महाराज की शरीर सम्बन्धी सुख साता सदा चाहते हैं । अपरंच आपकी सेवा मे कुछ समय पूर्व हमने एक पत्र भेजा था । अवश्य पहुँचा होगा । परन्तु दुर्भाग्यवश अद्यावधि कुछ भी उत्तर नही मिला । बराबर चिन्ता लग रही है सब विषय पहले लिख चुके हैं । मैं जो विएना जर्नल की ( Viena Journal) वोल्यूम रख आया हूँ उसकी मुझे विशेष आवश्यकता है कृपया शीघ्र ही भेजने की आज्ञा दीजियेगा । और मथुरा लेखो के लिये जो २ छोटी पुस्तिकाएँ रख आया हूँ उनका भी काम हो गया हो तो साथ ही लौटा दीजिएगा । मथुरा वोल्यूम आप aatr iीघ्र निकालें । यदि कार्यारंभ नही किया हो, या थोड़ा लिखा गया हो, और आपको अवकाश न हो तो मुझे सब लेख और कागजाद पुस्तके लौटा दे ! मै यहाँ प्रयत्न करके शीघ्र निकाल सकूगा ऐसी आशा है । अपरच आपकी संस्था की आशा है कि दिनोदिन दशा पूर्व से अधिक उन्नत हुई होगी । समाचार से प्रसन्न करेंगे। विएना जर्नल शीघ्र ही भेजने की आज्ञा देवें । पडित सुखलालजी सा. कहां है और कब तक रहेंगे कृपया उनको जय जिनेन्द्र कह देवें । कुशल पूछ लेवे | रमिक लाल भाई मे यथा योग्य पहुँचा देवें | Historical works or Rare Books और कुछ चाहिये तो सूचित करें, और योग्य सेवा लिखें कृपा बनी रहे ज्यादा शुभम् - फाल्गुन कृष्णा पूरणचन्द नाहर की वन्दना
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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