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________________ श्री राजकुमारसिंहजी के पत्र [१७ शान्त वैराग्य रस की श्रेष्ठता दिखाई जावे । न्यायपूर्वक राज्य के गुण और राज्य भक्ति की पुष्टि दिखाई जावे। ताकि सरकार हर एक विद्यार्थी के वास्ते पसन्द करे। दृढ नियम पर चेडा महाराज जैसो का और ऐसी ऐसी उत्तम कथाओ को संक्षेप मे लेसन के तौर पर दिया जावे । यह विचार हमने प्रोफेसर पी. डी. शास्त्री (पी. एच. डी.) सरकारी कालेज वालो से कहा उन्होने भी बनाना मन्जूर किया है और इसी पहली तारीख को विलायत जाते है सो इसके वास्ते जो जो पुस्तकें जरूरी होवे कि जिनको पढकर वे खुद वाकिफ हो सकें और पुस्तक में मदद मिले, ऐसी किताबें देने से साथ ले जावेंगे और डॉ० याकोबी से भी सलाह मिलाने को कहते हैं। लेकिन पुस्तकें ऐसी उपयोगी और चुनदा होनी चाहिये कि शास्त्रीजी को पढने का समय मिले अंग्रेजी की पुस्तकें जो कुछ छपी हुई मौजूदा है वे मंगा कर हम दे देवेंगे। मगर हिन्दी की पुस्तको के वास्ते हमने कोटा शेरसिंह जी से पूछा था उन्होने पुस्तको के नाम छांटकर भेजे हैं। लेकिन इन पुस्तको का पढना भारी पड़ेगा। इस वास्ते कृपा कर जरूरी पुस्तको की एक फरदी बनाकर जल्दी भेजिये। ताकि हम मगाकर १ जुलाई के पहले बम्बई मे शास्त्रीजी को दे सके । शेरसिंह जी की भेजी हुई फरदी की एक नकल आपके सेवा मे भेजते हैं। कृपा कर अपनी जो राय हो जरूर सूचना करिएगा पत्रोत्तर शीघ्र दीजिएगा। समय थोडा है कृपाभाव रखिएगा। आगे काम सेवा होय सो लिखिएगा। आगे शुभै मिति असाढ सुदी २ स० १९७७ राजकुमार की विनयपूर्वक वदना अवधारिएगा कृपाभाव रखिएगा। सुख साता के समाचार लिखिएगा और पूने का काम ठीक चलता होगा। लिखिएगा। पजूसन बाद मैं उधर आऊगा जब दर्शनो की अभिलाषा पूरी होगी। __पुस्तको की सूची १. सप्तव्यसन निषेध, २. मुख चरित्र, ३. स्याद्वाद रलाकर, ४. जैन प्रवेश १-२-३ ठि० मेघजी हीरजी वम्बई । ५ ताकिक स्यादवाद मजरी संस्कृत । ६. प्रमाण नयतत्त्व लोका लकार सटिक संस्कृत ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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