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________________ १६] मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र में हैं और आपके तो मित्र भी वैसे ही विधवान होंगे जैसे कि आप इस वक्त दीप रहे है। लाइब्रेरी बाबत क्यो नही होता। किंचित् बाकी रहा सो नही होना भी कोई जोगान योग है। लाल भाई सेठ से पूछेगे और, अबके बनेगा तो उन्हें साथ ही लेता आऊंगा। ये समय भी ऐसा चल रहा है कि चित्त की वृत्ति प्राय सबकी स्थिर नही है। लेकिन धर्म तो सहायक होता है और कार्य सेवा से याद फर्मायेगा । कृपा विशेष रखिएगा। अपने चित्त को जरा भी छोटा न करके जो कार्य उठाया है-पार लगाकर यश लीजिएगा। आगे शुभ ! श्रावण वदी १, सं. १९७७ शुक्रवार । आपका दर्शनाभिलापी राजकुमारसिंह की वन्दना आगरे वाले दयालचन्दजी भी यही है। वन्दना लिखाते है। The Mall Simla, 17-6-1920 सिद्ध श्री पूना सुभ स्थान सर्व उपमा लायक सर्व गुण विधान विराज मान परम उपकारी मुनि महाराज श्री १०८ श्री जिनविजय महाराज जोग्य लिखि शिमला.से राजकुमारसिंह की विनय पूर्वक वन्दना अवधारियेगा। यहा धर्म के प्रसाद से कुशल है। आपके सुखसाता के समाचार लिखने की कृपा करियेगा और मेरा विचार है कि १ सिरीज अग्नेजी रीडर बनवाने का है। यानी प्राइमरी से लगाकर बी. ए. तक की कितावें अंग्रेजी मे बने फिर तरजुमा जुदी जुदी भाषा मे भी हो सकता है। इसमें जैन का नाम जाहिर लाना कोई जरूरी नही है । मगर जैन शैली से धार्मिक नैतिक उपदेशक बाते दी जावे जिनसे सप्त विसन और अनर्थक पाप करते डरें। कुछ रसिक वीरता भी दिखाकर
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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