SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री काशीप्रसाद जायसवाल के पत्र १३३ दिगम्बरियो ने कहा, पर वे यशोधर का हाल कुछ बता नही सके । हो सके तो ग्रन्थ मुझे उधार भेजिये । क्या वे कलिंग में मुक्ति प्राप्त हुये थे ? कलिंगजन और कौन है ? जिनका जिक्र खारवेल के इतिहास मे है । 'नन्दराज नीत कालिंग जिनस निवेम" निवेस का अर्थ छाप है । जैसा कालिदास ने "खिन्नाङ्ग लिपिनिवेश" शकुन्तला मे लिखा है । इनका चरण चिन्ह भी नन्द ले गये थे ऐसा जान पडता है | यह कलिंगजिन कौन है ? यशोधर या महायण ? निवेस मे ु ऐसा प्रत्यक्ष है । यदि यह नि ( मि ) स हुना तो क्या निमि (मूल कालीन जिन ) का हाल कुछ मालूम है ? क्या वे कलिंग मे हुए ? मेरा चित्त इन प्रश्नो से चिन्तित है, और दूसरा काम अच्छा नही लगता । कृपा कर बतलाइये । Date इस तरह है - पान तरिया सवससतेहि मुरिय काले प्रोछिने १७५ मु० का० - फिर वाद इसके - चोपठि अग-सति कतरिय ( इत्यादि) आसति = अर्थ माति, पूजा या मन्त्र पढने की मंडप स्वरूप कदरा - लेकिन चोयठि क्या है ? चतुयष्ठि ? या ६४ | यदि चोसठ तो ६४ अर्क या ६४ अक का क्या मतलब ? हमारे मन के कष्ट पर दया करके फौरन जवाव लिखिये और पुस्तक भेज दीजिए । (5) ............ आपका का० प्र० जायसवाल पटना कार्तिक ८, १६७४ श्री मुनिजी को सादर प्रणाम ! पुस्तको के लिये तथा पच कल्याणक के अवतरण के लिए अनुग्रहीत वहुत अनुग्रहीत हुप्रा । मेरे पास लेख की छाप है । "खारवेल" ही है । इसे मैंने क्षाखेल = समुद्र ऐसा लगाया है। पुराने नाम ऐसे टेढे हैं कि साहित्य मे
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy