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________________ १३२ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र 'अनुभवतो कलियाण" (म् वा, णानि) से परिध्वनि निकलती है, नही तो आश्रम शब्द वर्ता गया होगा। कल्याणक जो केवल तीर्थकरों के लिए कहा गया सो पीछे की वात होगी । आप अपनी राय लिखियेगा । महाविजयो खारवेल सिरि वाले वाक्य को क्रिया नही है। महा विजय तो वह थे ही, साधु हो जाने पर भी ऐसा उनको कहना कुछ असगत न था । क्रिया शायद रही हो । उपरत हुये इस तरह बडे रहने पर भी भगवान लाल जी का पाठ ठीक नही था । आप छाप से देख लें। पनतारिय होने से १५ होता, पर पानतरिय है। इस पर मैने लिखा है पंचातिरीयं है। __ पण्डितजी ने भूल की थी जो उत्तर से अर्थ किया था। पं० जी के पाठ मे बहुत फर्क है, सो आप देख लें। एक मास में लेख और छाप भेजेंगे, छप रहा है। राजा चेत कोसला का राजा था जो कही संभलपुर मे था । मुरिया का अर्थ मैने चन्द्रगुप्त किया है, मौर्य नही । मौर्य (मुरिय के वंश को) मुरिय शब्द से अपत्य करके सस्कृत में बनाया। ग्रन्थ रत्नो के लिये बहुत धन्यवाद । . भवदीय काशी प्रशाद जायसवाल पटना कातिक १०/७५ मान्यवर ____ कृपा कर मेरे पिछले पत्र का उत्तर दीजिएगा। यश. (पुरीण यस) अहंत नाम के जिनका नाम खारवेल के लेख में आया है इनकी एक काय निसिधी कुमारी पर्वत पर थी, इसके चिन्ह भी मैंने देखे । पर्वत के मस्तक पर "देवसभा" जो आपने देखी होगी वहाँ पर चढ़ाई हुई निसिपी (स्तूप जैसे) बहुत है। मैं समझता हूँ कि यह यश यशोधर नामक भूतजिन है । इनका चरित छपा है । ऐसा मुझे कलकत्ते के
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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