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________________ १३४ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र उनका न मिलना सन्देह उत्पन्न करने वाला नही होना चाहिए । यथा "खसूचि" पर नाम व्याकरण मे न आ गया होता और आज शिला लेख में मिलता तो विचित्र जचता । फिर शिला लेखो मे कितने नये नाम मिलने है। मैंने दिखलाया है कि क्षारवेल आर्य थे । खारवेल समुद्र तट के राजा थे । उनके मा बाप ने किसी संयोग विशेप के कारण यह नाम रख दिया होगा। मेरा लेख प्रेम में गया है। शिलालेख से जैन धर्म के इतिहाम के वारे मे कई बातो का पता लगता है । जान पडता है कि मुरिय चन्द्रगुप्त भी जैन थे । खारवेल भी जैन भिक्षु हो गये थे, यह मेरे लेख वाचन से जान पड़ता है। आपसे पत्र व्यवहार हो जाने से मुझे बड़ा सुख मिला । लेख छपने पर आपके पास भेज़ गा । पुस्तको के लिये अनेक धन्यवाद । भवदीय का० प्र० जायसवाल खारवेल का हाल कही न कही जैन ग्रन्थों मे अवश्य होगा । "चेतवश", "ऐर", "महामेघवाहन" (महेन्द्र) आदि किसी न किसी रूप मे होगा । ओडिसा के ग्रन्थो में "ऐर" नाम से उल्लेख मुझे मिलता है । क्या आपने मेरा लेख श्री महावीर स्वामी के निर्वाण काल (545 BC.) पर देखा है। मैंने देखा कि सिर्फ जैन Date चन्द्रगुप्त का (325 B.C) ठीक था उसी के सहारे बहुत सी भूले सुधारी । यथा नहपान 96-58 B C नहपान की जैन गाथा मे नहवाण (नहवहरण) अशुद्ध लिखा है। आपका का० प्र० जायसवाल
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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