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________________ पं. श्री गौरीणकर, हीराचन्द जी ओझा के पत्र १११ रखा जाय । ये पचास Reprint कॉपीयां मेरे पास भेज दी जायं और उसका व्यय विल आने पर मैं भेज दूँगा । दूसरी बात उनसे यह सूचित करें कि मेरे लेख का प्रूफ सशोधन कोई हिन्दी तथा संस्कृत . विद्वान करें ताकि उसमे अशुद्धि न रहने पावें । यदि आप यह कर सकें तो बहुत अच्छा होगा । G. H. Ojha (१०) अजमेर ता. १८-१०-१९३२ श्री मान् आचार्य जी महाराज श्री जिन विजय जी की सेवा मे गौरी शंकर हीराचन्द श्रोभा का सादर प्रणाम ज्ञात होवे, अपरंच राजपूताने के इतिहास का चतुर्थं खण्ड कल मैंने पण्डित सुखलाल जी संघवी द्वारा भेजा, वह आपके समीप पहुँचा ही होगा । ठाकुर कन्हैया सिंह जी भाटी बडे ही इतिहास प्रेमी है । वे आपके पास उपस्थित होगे । आप कृपा कर राजपूताने के इतिहास के चतुर्थ खण्ड का अवलोकन कर मैंने जो काठियावाड़ के गोहिलो के संबंध मे लिखा है उस पर अपनी सम्मति लिख प्रदान करावें । योग्य सेवा से स्मरण फरमायें । (११) आपका नम्र सेवक गोरी शकर हीराचन्द ओझा अजमेर ताः ४-११-१९३२ आचार्य जी महाराज श्री जिन विजय जी के चरण सरोज मे सेवक गोरीशंकर हीरा चन्द ओझा का दण्डवत प्रणाम स्वीकृत हो अपरंच । मैंने काठियावाड़ के गोहिलो के संबंध में जो कुछ लिखा, उस विषय मे आपकी सम्मति जानने की इच्छा से मैंने ठाकुर कन्हैया सिंह जी भाटी
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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