SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० मेरे दिवगत मित्रों के कुछ पत्र । जन साहित्य सशोधक के प्रथम खंड की जिल्द मैंने बंधवाली है, परंतु दूसरे खंड के दो ही अंक पहला और दूसरा आये हैं। यदि उसके तीसरे और चौथे अंक छपे हो तो कृपया मेरे पास भिजवाइयेगा । यदि न छपे हों तो उन दो की ही जिल्द बंधवालू। दूसरे वर्ष के इन अंको के लिये छपा हुआ टाइटल पेज तथा लेख सूची भी नही हैं। आपकी आज्ञानुसार मैंने ध्रुव जी के स्मृति ग्रंथ के लिये "गुजरात देश और उस पर कन्नौज के राजाओ का अधिकार" नामक लेख आज तैयार कर लिया है और आज की ही डाक से सेक्रेट्री वसंत रजत महोत्सव गुजरात वक्यूिलर सोसायटी के पास रवाना कर दिया है, क्योंकि उनका पत्र मेरे पास आया है। लेख तो साधारण कोटि का ही है परन्तु उससे गुजरात के प्राचीन इतिहास पर कुछ नया प्रकाश अवश्य पड़ेगा । आशा है कि गुजरात के इतिहास प्रेमियो को शायद वह रुचिकर हो । आपसे प्रार्थना है कि एक बार उसे मंगवाकर अवश्य पढ़ियेगा और अपनी सम्मति भी मुझे प्रदान करने की कृपा कीजियेगा । यदि उसमें कोई बात छूट गई हो तो उसकी सूचना अवश्य मुझे दीजिएगा ताकि मैं उसमें बढ़ा दूं। लेख तेरह पृष्ठ मे समाप्त हुआ है और सात पृष्ठ टिप्पणी के हैं। टिप्पण सब अत मे दिये हैं । जिनको छपते समय यथा स्थान लगवाने की कृपा आप कीजिएगा। अहमदाबाद आने की आपकी प्राज्ञा सर्वथा शिरोधार्य है, परन्तु नेत्रो की पीड़ा के कारण अभी मेरा आना नही हो सकता आपरेशन हो जाने के बाद एक बार अवश्य आपकी सेवा मे उपस्थित होकर चरण स्पर्श करने का लाभ उठाऊंगा। विनयावनत गोरीशंकर हीराचन्द ओझा एक और निवेदन है कि बसंत रजत महोत्सव अन्य के सम्पादक से कहला दे कि मेरे इस लेख की पचास प्रतियां अलग छपवालें और टाइटल पेज लगाकर उस पर मेरा नाम छा। अक क्रम १, २ से
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy