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________________ ११२ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र को बम्बई जाते या लोटते समय आपसे मिल कर उस विषय में आपकी सम्मति लिखवाने का आग्रह किया था । आपने कृपा कर सम्मति लिख दी, उसके लिये मैं आपका बड़ा ही अनुग्रहीत हूँ मेरा इतिहास प्रकाशित होने के पूर्व ही आपने गुहिलों के सम्वन्ध मे वही निर्णय किया यह विशेष आनन्द की बात है । आप जैसे विद्वानो का मेरे अनुकूल विचार होना मेरे लिये सौभाग्य की बात है। यदि आप कृपा कर अनुमति प्रदान करें तो मैं आपकी इस सम्मति को नागरीप्रचारिणी पत्रिका मे लेख रूप मे प्रकट कर दूँ । कृपया उत्तर से सूचित कीजियेगा । सोलंकियों के इतिहास की एक प्रति आपने मंगवाई, वह शान्तिनिकेतन के पते पर शीघ्र ही भेज दी जायगी । मालवे का परमार राज्य अस्त होने पर वहाँ की एक शाखा अजमेर जिले में आ बसी जिसका वृत्तान्त मैंने राजपूताने के इतिहास पृष्ठ २०५, ६५६, १२७८ मे दिया है । आप देख लें । गुजरात के सोलंकी राजा भीम देव ( भोला भीम) के दो ताम्र पत्र मुझे मिले हैं। उनकी छापें मैंने ले ली है । अब उनका सम्पादन करना है इसलिये मैं उनका अक्षरोद्धार तैयार करूंगा और एक प्रति आपकी सेवा में भेज दूँगा । आपका नम्र सेवक गोरी शंकर हीरा चन्द श्रोभा पुनश्च - सिद्धराज जयसिंह का एक बहुत बिगड़ी दुर्दशा का लेख बाँसवाड़ा राज्य से मिला है । उसकी भी एक प्रति आपकी सेवा में प्रेषित करूँगा । (१२) म. म. रायबहादुर गो. ही. ओझा अजमेर ताः २७-१२-१९३४ परम् श्रद्धेय श्रीमान् आचार्य जी महाराज श्री जिन विजय जी की सेवा में सेवक गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का दण्डवत प्रणाम मालूम होवे | अपरंच | इन दिनो आपका कोई कृपा पत्र नही मिला सो
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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