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________________ पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्द जी ओझा के पत्र १०६ लिख सका। अब लेख लिखवा रहा हूँ और ५-६ दिन मे तैयार हो जायगा। मैंने अपना लेख हिन्दी मे लिखा है। लेख का नाम 'गुजरात देश और उस पर कन्नोज के राजाओ का अधिकार है। कृपाकर यह लिखिए कि Commemoration Volume किस भाषा में होगा। अग्रेजी या गुजराती अथवा मिश्रित । यदि मेरा हिन्दी लेख उसमें न छप सकता हो तो आप कृपा कर -उसका गुजराती अनुवाद कर दीजिये । यदि Commemoration Valume छप चुका हो तो वैसी सूचना दीजिए ताकि यह लेख किसी अन्य पत्रिका में भेज दिया जाय । पुरातत्व वर्ष तीन की तीसरी संख्या मेरे पास नहीं पहुंची। इसलिये कृपा कर वह संख्या मेरे पास भिजवा दीजिए। आपका नम्र सेवक गौरीशंकर हीराचन्द ओझा कृपया यह भी लिखें कि मेरा लेख किसके पास भेजा जाय। आपके पास या दीवान जी के । अजमेर ता : १-७-१९२७ का सविनय प्रणा परम सम्मानास्पद पूज्यपाद आचार्य जी महाराज श्री जिन-विजय जी के चरण सरोज में गोरीशंकर ओझा का सविनय प्रणाम अंगीकृत हो ! अपरंच !! आपका कृपा पत्र ता. २७-६-१९२७ का मिला। जिसके लिये शतशः धन्यवाद । पुरातत्व वर्ष ३ का ३ग अंक मिला। जैन साहित्य संशोधक खण्ड ३ अंक पहले ही मिल चुका था। उसके लेख बड़े ही महत्व के हैं जिसका श्रेय आप जैसे असाधारण विद्वान् को ही है। ऐसे उच्च कोटि के पत्र की गूर्जर भापा में बड़ी प्रावश्यकता है, जिसको आप पूरी कर रहे हैं। वह बड़े सौभाग्य की बात है। जसके लिये शतशः आपका कृपा पत्र
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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