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________________ १०४ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र . बम्बई गजेटियर की पहली जिल्द के पहले भाग में जो गुजरात का प्राचीन इतिहास छपा है, वह अपूर्ण ही है और कितनी ही भद्दी गलतियाँ उसमें पाई जाती है। आप अवश्य यह महत् कार्य करने का वीड़ा उठाईयेगा। ___ मैं आपके दर्शनों को बड़ा ही उत्सुक हूँ, परन्तु न मालूम आपके दर्शनों का लाभ कब प्राप्त होगा । शीतकाल मुझे सफर के लिये अनुकूल नहीं रहता। शीतकाल के बाद अवश्य एक बार अहमदावाद आकर आपके चरण वन्दन करूंगा। ___ मेरा विचार राजपूताने का इतिहास प्रकाशित करने का है। कर्नल टॉड ने १०० वर्ष पूर्व राजपूताने का इतिहास लिखा था । वह भी केवल ६ राज्यो का ही । मैं अनुमानतः ४० वर्ष से इस काम में लगा हुआ हूँ। अब मेरी इन्छा एक वृहत् इतिहास प्रकाशित करने की है। राजपूताने का प्राचीन इतिहास भी प्रकाशित करना है परन्तु इसके लिये जितनी शोध खोज होने की आवश्यकता है उतनी अब तक नही हो पाई है और अब तक मैं उसी काम में लगा हुआ हूँ। राजपूताने का विस्तृत प्राचीन इतिहास, के प्रारंभ में उसका दिग्दर्शन मात्र किया जायगा । वह भी १५० पृष्ठ से कम न होगा। इतिहास प्रेस में भेज दिया है अब छपना शुरू होगा । उसके लिये नोटिसें छपवा कर वितरण की गई है और हिन्दी पत्री में उसके सम्बन्ध मे लेख प्रकाशित हो इस पत्र के साथ एक नोटिस आपकी सेवा में भेजता हूँ और प्रार्थना है कि आप उसको देखकर एक स्वतन्त्र लेख "दि गुजराती" और एक दो अन्य प्रसिद्ध गुर्जर पत्रो मे प्रकाशित कर गुर्जर साक्षर वर्ग को उससे परिचित करेंगे तो उसकी जानकारी गुर्जर वर्ग में भी होगी। विनयावनत गौरीशंकर हीराचन्द ओझा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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