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________________ अजमेर पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी प्रोझा के पत्र १०५ (५) रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ता० २७-६-१९२६ विद्वद्वराग्रगण्य आचार्य जी महाराज श्री जिनविजय जी के चरण सरोज में सेवक गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की प्रणति । अपरंच इन दिनो आपका कोई कृपा पत्र नही मिला। सो लिखवाने की कृपा फरमा। मैंने सुना है कि एक पालीकोष आपकी पुरातत्व सस्था ने प्रकाशित किया है। कृपा कर सूचित करें कि वह कोष अकारादि क्रम से है अथवा पाइयलच्छी नाम माला की शैली का है। यदि अकारादि क्रम से है तो प्रत्येक शब्द का अर्थ गुजराती में लिखा गया है अथवा हिन्दी में सो भी कृपा करके सूचित कीजियेगा। ___ आपकी भेजी हुई हस्तलिखित प्रति आपका पत्र मिलने पर बुकपोस्ट रजिस्टर्ड से लौटा दूंगा। इन दिनो मेरा स्वास्थ्य अच्छा नही रहता। राजपूताने के इतिहास का द्वितीय खण्ड आधा छप गया है और बाकी छप रहा है, सो कार्तिक के अन्त तक छप जायगा। तब आपकी सेवा में भेज दिया जायगा। प्रथम खण्ड के सम्बन्ध के चित्र छप रहे है जो दूसरे खण्ड के साथ भेजे जावेंगे। ___ मेरी इच्छा यह है कि मेरे इतिहास मे चित्तौड के प्रसिद्ध 'जैन कीर्ति स्तम्भ' का फोटो प्रकाशित हो तो अच्छा है परन्तु उसका ब्लाक मेरे पास नहीं है। यदि आप कृपा कर आपके पूना से प्रकाशित किये हुए मासिक जैन पत्र मे जैन कीति स्तम्भ का जो फोटो छपा है उसका ब्लाक कुछ दिनो के लिये मुझे प्रदान करें तो मैं उसे भी प्रकाशित कर दूं। यदि आप ब्लाक भेज सकें तो शीघ्र भेजने की कृपा करें, क्योकि अन्य ब्लाक छप रहे हैं, जिनके साथ यह भी छप जावें । भारतवर्ष मे यही एक जैन कीति स्तम्भ है, इसलिये उसे छापने की इच्छा हो रही है । इस पत्र का उत्तर शीघ्र भेजने की कृपा करें। विनयावनत गौरीशंकर हीराचन्द ओझा
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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