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________________ पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी ओझा के पत्र १०३ था। मेरे इस अनुमान की पुष्टि के लिये उक्त लेख की आवश्यकता है इसी से आपको कष्ट देना पड़ा है सो क्षमा कीजियेगा। विनयावनत् गोरीशंकर हीराचन्द ओझा अजमेर तारीख १६-११-२४ विद्वद्वराग्रगण्य, आचार्यजी महाराज श्री जिनविजयजी महाराज के चरण सरोज मे सेवक गौरीशंकर हीराचद ओझा का सादर प्रणाम् । अपरंच ? आपका कृपा पत्र 'पौराणिक इतिहास' विषय का प्रिंसिपल आनन्दशंकरजी का लेख, ईडर राज्य के मुरलीधरजी के मन्दिर के शिलालेख को तथा विजयसेन सूरि के विषय के लेख की नकल मिली। मैं बाहर चला गया था, जिससे आपको इन सबकी पहुच समय पर न लिख सका। इसके लिमे क्षमा प्रार्थी हूँ। आपने बड़ी कृपा करके सब अमूल्य लेख भेजे। उनके लिये मैं आप श्री का बहुत ही अनुग्रहीत हूँ। कृपा कर सूचित कीजिएगा कि आप अपना गुजरात का प्राचीन इतिहास कब तक प्रकाशित करने का विचार रखते हैं । यदि आप जैसे असाधारण विद्वान् और प्राचीन विषयो के ज्ञाता के हाथ से गुजरात का प्राचीन इतिहास प्रकाशित होगा तो वह वास्तव मे रत्न रूप होगा। अग्रेज विद्वानो एव उन्ही के लेखो पर निर्भर रहने वाले देशी विद्वानो का लिखा हुआ इतिहास कुछ भी उपयोगी नही हो सकता । प्रथम तो उनको जितनी चाहिये उतनी सामग्री नहीं मिल सकती। दूसरी बात यह कि वे हमारे यहाँ के आचार-व्यवहार रीतिरिवाज से सर्वथा अनभिज्ञ होते हैं । तीसरी, उनकी धारणा यही रहती है कि भारतवासी कोरे जंगली थे। चौथी और सबसे बड़ी त्रुटि उनमे यह होती है कि उनका सस्कृत का ज्ञान भी नियमित ही होता है।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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