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________________ मुहता नैणसीरी ख्यात अर सीरो वणायो' । कैर-बाटो हुतो तिणरी तरकारियाँ वणाई । भगतरी तैयारी हुई। प्रांण वीनती कीवी-'श्रीरावजी ! आरोगण तैयार छै ।' . पछै आप सारा लोकासू आरोगण पधारिया । त्या परीसारो हुप्रो । सारै साथनू सीरो, तरकारिया, भाजी, इण भाति परीसारो हुयो । लोक जीमियो । आप ही आरोगिया।" रातरी भगत हुई। पाछली रात रावजीरो कूच हुो । परभात हुवो, त्या सारा ठाकुरां हाथ दीठा' । राता-लाल दीसण लागा1 । तद सारा ठाकुरारा आप-आप माहै देखण लागा' । त्यु किणी हेक कह्यो'जु इण वातरी खवर मोढीनू पूछाया पडे ।' तद रावजी असवार दोय मोढीनू पूछणनू म्हेलिया । त्या मोढी असवार आवता देख सांम्ही आइ कह्यो-'जिक वई पाया सु जाणियो।' कह्यो-'श्री रावजी रिणमलजीरै वैर पधारै छै स परमेसरजी थॉनू रग चाढियो । अर अठै खेती काई न होवै छै सु धान थोडो पाईजै" । सु मजीठ पड़ी हुती तियेरो सीरो कियो हुतो। सु परमेसरजी थानू रंग चाढियो । श्रीरावजीनू पासीस कहिज्यो । अर मालम करजो; भोजन थांने अमृत हुसी।' 1 घृत और खाड डाल कर हलुमा वनवाया। 2 कैर-वाटा था जिसके साग बनवाये । (कर-वाटा = करीलके कच्चे और ताजे फल) 3 भोजनकी तैयारी हुई । प्रा करके विनती की, 'श्री रावजी | भोजन तैयार है।' 5 तव आप सब लोगोके साथ भोजन करने को पधारे । 6 फिर परोसगारी हुई। 7 स्वय (राव जोधाजी)ने भी भोजन किया। 8 यह भोजनकी तैयारी सब रात्रीको हुई थी। 9 पिछली रातको रावजीने वहाने पूत्र कर लिया। 10 ज्योही प्रभात हुआ तो सभी ठाकुरोने अपने हाथोको देखा। 11 एकदम लाल दिखने लगे। 12 तव सभी ठाकुर परस्पर एक दूसरेके हाथोको देखने लगे। 13 तव क्सिी एकने कहा । 14 तव रावजीने दो सवारोको पूछने के लिये मोटीके पास भेजा। 15 जिसके लिये आये हो सो मैंने जान लिया। 16 उमने कहा'धी गवनी रिणमलजीगे वैरका बदला लेनेके लिये जा रहे है सो परमेश्वरने तुम पर रग कठाया है ।' 17 यहा पर खेती नहीं-जैसी होती है अतः घान्य थोडा प्राप्त होता है । 18 मह गोजन प्रापको अमृतके समान होगा।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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