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मुहता नैणसीरी ख्यात यांआय रावजीनू मालम करी। रावजी सुण बोहत राजी
हुवा ।
पछै उठारा चढिया सांखला हरभौरै गाव बैहगटी आया । हरभौजी सौणी हुता । सु हरभौरो भाणेज जेसो भाटी आपरै गोडै ऊभो हुतो', सु हुकम कर भेळो बेसाँणियो । सो सलाम कर भेळो बैठो त्यां हरभौ माथो धूणियो' । तद अरज कीवी-'जु रावळे रिजकरो सीरवी ओ हुसी । अर म्हे धरतीरा हीज सीरवी हूस्या ?' रावजी आरोग अर सौण पूछिया । त्या हरभौ अरज कीवी-'जु सौण इसडा छ जु आज जितरी धरतीमे श्रीरावजी घोडो फेरै इतरी धरती श्री रावजीरा पूत पोतरानू हुसी' । रावजीरो वडो इकबाल हुसी ।' तदी' रावजी बोहत राजी हुवा । असवार हुवा । असवार होताँ भुवर ढोल हरभौ कना माग लियो ।
अठारा असवार हुवा सेतरावै रावत लूणेरै पधारिया | रावत लूणो भली भात मिळियो नही । तैसौ श्री रावजी मन मांहै क्यौहीक अतराज सा हुवा । त्यां रावतरै महिळ सोनगरी । सो रावजीरै नांनाणे दिसासौ साख हुतो, सु रावजी जुहार कहायो । त्यां श्री रावजीन भीतर बोलाया। निछरावळां कीवी । अर कह्यो-'बाबा ! रिजक, विसायत दीसै छै सु थाहरी छ। भोजन करो । सर्व भला
__I इन्होने। 2 पीछे वहासे चढे हुए साखला हरभूके गाव वैहगटीको आये। 3 हरभूजी शकुनी थे। 4 हरभूका भानजा भाटी जैसा आपके (राव जोधाजीके) पास खडा था। 5 सो आज्ञा देकर अपने साथ बैठाया। 6 सो सलाम करके भोजन करनेको साथ बैठ गया। 7 उस समय हरभूने सिर धुना। 8 आपकी सम्पत्तिका भागीदार यह होगा और हम धरतीके ही भागीदार होगे? 9 रावजीने भोजन करके शकुनका फल पूछा। 10 ये शकुन ऐसे है कि आज जितनी धरतीमे रावजी अपना घोडा फिरा देंगे उतनी धरती रावजीके पुत्र-पोतोके अधिकारमे हो जायगी। II रावजीका वडा प्रताप बढेगा। 12 तब। 13 सवार होते समय हरभूके पास जो भँवर ढोल था वह उससे मांग कर ले लिया । 14 यहासे सवार हो कर सेतरावा गावमे रावत लूणाके यहा पधारे। 15 रावत लूणा रावजीसे अच्छी प्रकार नही मिला, इससे रावजीके मनमें कुछ नाराजी हुई। 16 रावतकी स्त्री सोनगरी, जिसके साथ रावजीका ननिहालकी ओरसे कुछ सम्बन्ध था सो रावजीने उसे जुहार कहलवाया।