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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ७१ . वाढी' । नै घड़सी हाथीरा दांतूसळां माथै पग देने, अंबाड़ी मांहै पग देने पातसाहनूं हेठो नांखियो ; नै पातसाहरै माथैरो टोप सवा लाखरो थो सु उरो लीनो । लूणग हाथीरी सूंड उरी लेनै घोड़ारी पाहोरी माहै घाती । अतरै बोजोही साथ पातसाही प्राय पुहुँतो, तिको पातसाहनूं पकड़ ले गयो, सु पातसाह आगै सको वडा उमराव झूठा प्रवाड़ा कहण लागा' । पछै पातसाह समसदीनूं पूछियो-"थांसू मुकालबै (बल) मांहरा वडा उमरावां मांहै कुण-कुण हुवा ?" तरै समसदी कह्यो-"नांव तो हूं जांणूं नहीं', नै मोसूं मामलो° कियो त? थांहरावड़ा उमरावां मुसलमांनां मांहै घणा साथरोधणी को न हुतो। वे तो असवार २ हिंदु हुता, तिणां म्हांनूं झालियो, नै उणै म्हारा माथारो टोप रुपिया सवा लाखरी कीमतरो लियो छै; हाथीरी सूंड पाड़ी छै सु लीवो छै, नै हूं उणांनै देखू तो वताय दूं।" तरै पातसाहरा वडा उमराव प्रवाड़ावै हुता तिके प्रांण दिखाया। पूरबरै पातसाह उणां मांहै कोई कबूल न कियो । पछै सारा उमराव पंचहजारी था लेने (म) सदी ताऊं सारो लोग दिखायो"। सिगळां पछै रावळ घड़सी नै खूणग अाया; तरै समसदी पातसाह इणांनूं दीठा'"; तरै कह्यो-"ौ हुवै ।" तरै घड़सी माथारो टोप सवा लाखरो हाजर कियो । लूंणग हाथीरी सूंड पाहोरी मांहिस्रं काढ हाजर कीवी। पातसाह गाढो राजी हुवौ । इणांनूं फुरमायो-"चाहै सु मांगो, म्हे ... I सो लूणगने तो बादशाहके हाथी पर तलवारसे प्रहार किया और उसकी सूंडको काट दिया। 2 दाँतोंके ऊपर । 3 अंवारीके अन्दर पाँव रख कर बादशाहको नीचे गिरा दिया । 4 सो ले लिया। 5 लूणगने हाथीकी सूंडको लेकर के अपने घोड़ेकी पाहोरीमें (थैलीमें) डाल दी। 6 इतने में दूसरे वादशाही सैनिक भी आ पहुँचे। 7 सो वे सभी बड़े उमराव अपनी वीरताके झूठे बखान करने लगे। 8 हमारे बड़े उमरावोंमेंसे तुम्हारेसे मुका बिलेमें कौन-कौन हुआ था। 9 नाम तो मैं जानता नहीं। 10 युद्ध । II तुम्हारे । .. 12 कोई नहीं था। 13 जिन्होंने मुझे पकड़ा। 14 और मैं उनको देख लूं तो बता दूं। 15 तब बादशाहके उन बड़े उमरावोंको जो अपनी वीरताकी शेखी हांकते थे, उनको ला कर दिखलाया। 16 पूर्वके वादशाहने उनमेंसे किसीको स्वीकार नहीं किया। 17 पीछे सभी पंच-हजारी उमगवोंसे लेकर...सभी लोगोंको दिखलाया। 18 सबके पीछे। 19 तब बादशाह समसुद्दीनने इनको देखा। 20 ये हो सकते हैं। 21 बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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