SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ६३ दूहो, रावळ दूर्दै आपरो कह्यो मैं जाणंत मेल्हियो, विसहर माथै पाव । मनखत मांणी आपरी", अहिवा खाव म' खाव ॥१ गीत वीठू बोहड़रो कह्यो धर काज धीरत मल धरै धीर तण', आपांणो बळ आउठ गिर । पाव परठवै दूद परगंजण' । सरप कसण सुरतांण सिर14 ।।१ सु विख किलंब15 सिर केहर दुजरणसल पाव परठवै सझै फण। कंदळ करण घणूं कसमसियो", फेर न सकियो किही18 फण ॥२ मिणधर19 मेछ. कमळ मह-मोहण, चाच वंसोधर दे चलण । {णस वट तो तण माडेचा, मनखत मांणी निभै मण ॥३ वडगिर? ? विखम वडो-वड रावळ, दुरंग29 पण ते दईव डरै । पोह° पतसाह पाळ-कुळ1 पैहडै । कीधो पग तळ राज करै ।।४ ___ I रावल दूदेके स्वयंका कहा हुआ दोहा । 2 जानते हुए। 3 रखा। 4 सर्प । 5 सिर पर । 6,7 जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। 8 सर्प। 9 नहीं, मत । 10 लिये। II शरीर। 12 रखना, धारण करना। 13 शत्रुओंका नाश करनेके लिये। 14 सर्परूपी सुल्तानके सिर पर कृष्णके समान । I5 मुसलमान । 16 युद्ध। 17 (व्यर्थ) प्रयत्न किया । 18 किसी भी प्रकार । 19 सर्प । 20 म्लेच्छ, मुसलमान। 21 महामोहन (श्रीकृष्ण) । 22 सिर । 23 वंशको रखने वाला, वंशको उज्ज्वल करने वाला। 24 पाँव । 25 माड धराका स्वामी, जैसलमेर प्रदेशका भाटी क्षत्री। 26 निर्भय होकर जैसा चाहा वैसा किया । 27 जैसलमेरका किला । 28 बड़े-बड़े। 29 दुर्ग, किला । 30 प्रभु, स्वामी । 31,32 कुलकी मर्यादा छोड़ देते हैं। किया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy