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________________ ५० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात ताबूतां ऊतारिया, प्रह ढोई मड' हांण । पड़िया दिल्ली पीटणा', भोखिस दुक्ख दिवाण ।।८ डसण-गयंदां नांखिया, भारवंध भुज ठोर। कनछ रजां पट्टाझरण', जेहा पावस घोर ॥६ पेरोसा सुरतांण धिख, बळ छळ देखै वेव । कप्पूरौ नै मरहटो, सिर मुंडै गद देव ॥१० सांभळ' मिलक कमालदी, सुज' भाखै पतसाह । केहर मार अदावदै, से भाटी चावाह1 ॥११ वात पातसाह वळे कमालदीनूं विदा करै छ । कमालदी उजर करै छै जु-"हजरत मरहटा कपूरारै कहै मोनूं हळको पाड़ियो । म्हारा भाई-भतीजा रजपूत मराया, खराब हुवो नै हजरत पण भलो न मांनियो सु हूं जेसळमेर ऊपर जाऊं नहीं।" तरै पातसाह घणो हठ करनै कमालदीनूं विदा कियो। दूहो-सुण फुरमांण न खांण अन, एक न दूजी वार । हंसां वचन संभाहियो, गढचे रंद दुवार ॥१ वात कमालदी घोड़ा हजार अस्सी ले आयो। गढ घेरियो । दिहाडै ढोवा हुवा छै", सु परधान वीकमसी ईडर जाय चाकर हुवो थो, सु गढ विग्रहियो सांभळ नै आयौ । आयां पछै कहण लागो जु-"राज मोनूं कूड़ो. कळंक दे चोरीरो काढियो थो सु हमैं साच कूड़रो 1 युद्ध । 2 रोना-धोना । 3 कहेगा। 4 हाथियोंके दांत । 5 डाल दिये। 6 केवाँच ?. 7 हाथी। 8 दोनों। 9 सुन कर । 10 पुनः । II शत्रुतासे । 12 सभी, समस्त । 13 प्रसिद्ध । 41 मरहट्टा कपूरेके कहनेसे हजरतने मुझे हल्का दिखाया। 15 दिनको आक्र. . मण हो रहे हैं। 16 गढ़के घिर जानेकी बात सुन करके आया। विग्रहियो युद्ध होना। 17 झूठा । 18 अब। .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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