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________________ . ४६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात दूहो-हुओ हमल्लो हिंदवां, सिंधारै सुजड़ेह । तरै कोड़ी माल ले, पीट सईदां देह ।।१ उणां सेखजादांनूं मारिया । माल घणो दीठो, जु ओ माल पात- साहरै घररो सु इण वांसै उपद्रव हुसी । जिणे ठाकुरै कहि नै माराया था, तिणांसूं वुरो मानियो । माल सगळो गढ नीचे भुंहरा छ तिणां माहै घातियो । पछै या वात पातसाह सांभळ नै गाढो कोपियो । कह्यो-"मैं इणांनूं घणा गुना माफ किया था, पिण ो गुनो माफ करूं नहीं।" दूहा-जेसळमेर दुरंग गढ, वसै न काही वाक । खून बगस्सै खाफरां', ते सुरतांण तलाक ॥१ बालम' दाढी कढ्ढ कर, घातै वेवै हाथ । साझू गढ हूं मूळ रयण, लेखू चंद्रप्रसाथ ।।२ वात पातसाह जेसळमेर ऊपर फोज विदा कीवी, तिणमें सिरदार कमालदी, घोड़ा हजार तीससौं विदा कियो । कमालदी गढ पाय घेरियो । घणा दिन हुवा पण गढ तूटो नहीं। वरस २ तथा ३ हुवा सु कमालदीनूं सोगटां13 रमण घणी चूंप14 हुती, सु एक दिन मूळराज सादो . सो वागो पेहर सादा हथियार वांध नै कमालदी चोपड़ रमतो थो त,15. आय ऊभो रह्यो, दांण बतावण लागो'" । सखरा दांण करै । तरै आप कमालदी रमण लागा सु मूळराज दांण २ जीतो। ऊठतां दांण १ कमालदी जीतो19 । तरै तो परा ऊठिया। दिन १० तथा १५ ___I कटारियोंसे मार दिया । 2 माल बहुत देखा, तव सोचा कि यह माल वादशाहके ... घरका सो इसके पीछे उपद्रव होगा। 3 जिन ठाकुरोंने कह करके इनको मरवाया था उनसे नाराज हो गये। 4 सारा माल गढ़के नीचेके तलवरोंमें डाल दिया। 5 पीछे बादशाहने जब यह वात सुनी तो वहुत क्रोधित हुआ। 6 प्रकार । 7 अपराध । 8 काफिरोंको। 9 शपथ, . प्रण | 10 वादशाह । II दोनों। 12 अधिकार करूं, नाश करदं । 13 चौपड़के पासे । . . 14 इच्छा, शौक । 15 वहां। 16 खेलको चाल बताने लगा। 17 अच्छे दाँव करता है। 18 तव आप और कमालुद्दीन खेलने लगे उसमें मूलराज दो दाँव जीत गया। 19 उठनेके समय (वाजी समाप्त करते समय) एक दाँव कमालुद्दीन जीता।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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