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________________ ४४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात सूंक-भाड़ा लै आपरो काम करै' । उपजै सु सोह खाय जाय, थांनूं क्यूं . दै नहीं।" इण भांत कंवरांनूं भखावै छै । एक दिन मूळराज रतनसी दरबारै वैठा छै । दूदो जसहडोत कनै बैठो छ, तरै साकारी वात चली। तरै दूदै जसहडोत मूळराज रतनसीनूं कह्यो-"जेसळमेर इतरी वडी ठोड़, नै पीढ़ी ५ तथा ७ आपणो हुई, नै साको न हुवो । साका विगर नाम न रहै, सु एक साको कीजै ।" तरै मूळराज, रतनसी नै दूदै साकैरी निसचे करी, नै पातसाहसू विरोध वधावणरी करै । पिण वीकमसी करण न दै । वळे आसकरण वीकमसीरी घात कंवरां कनै घातो' सु कहै-"पागलै दिन वोखारी सेखां कनै रु० १३०००) वीकमसी लिया , ज्यांमें रु० ७००) रावळे दिया ।" औ वातां करै । सु इणारी वातांसूं मूळ राज रतनसी वीकमसीनूं मारणरो विचार कियो। दूहा-नभै दुरंग दूवा नरां, सोह' आलोचै सीर। .. कंवरो सत्र13 वीकम कहै, हीया पलट्ट हीर ।।१ मळू मंकड़ दोयण मुख, कर लागौ कूटाळ । .. वीकमसी वीसूत्रसौं, रतनो पूंछ रंढाळ ॥२ वारता आसकरण नै मूळराज रतनसी वीकमसीनूं मारणरो विचार कियो सु आ वात रावळ जैतसीरी रांणी सुणी । तरै वीकमसीनूं एकंत तेड़ कह्यो-"तूं परो जा। कंवरांमें लखण क्यूं न छै ।" तरै वीकमसी कह्यो-"हूं कठी जाऊं? ?" पण रावळ सूंस दे वीकमसीनूं जांणो थपायौ18 | I प्रधान वीकमसी रिश्वतें आदि लेकर अपना काम चलाता है। 2 जो उपज होती है सब वह खा जाता है, तुमको कुछ नहीं देता। 3 इस प्रकार कुंवरोंको बहकाते हैं। 4 और कोई साका (ख्यातिका काम या युद्ध) नहीं हुआ। 5 सो एक साका किया जाय । 6 लेकिन वीकमसी करने नहीं देता। 7 आसकरणने भी वीकमसीके विरुद्ध कुंवरोंके कान भरे। 8 सो यह कहता है कि अभी थोड़े दिन हुए बुखारी शेखोंसे रु. १३०००) वीकमसीने लिये। 9 जिनमें से रु. ७००) ही आपको दियें। 10 ऐसी बातें करते हैं। II निर्भय।. 12 सभी । 13 शत्रु। 14 शत्रु । I 5 जिद्दी, हठी। 16 तू यहांसे चला जा, कुंवरोंमें कुछ भी विवेक नहीं है। 17 मैं कहाँ जाऊं। 18 परंतु रावलने शपथ देकर वीकमसीको जानेका निश्चय करवाया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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