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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३५ वात रावळ जेसळ दुसाझरो बेटो, तिणनूं गजनीरै पातसाह रावळ भोजदेनै मारनै लुद्रवो दियो, सु जेसळ मन मांहै जांण जु “श्रा ठोड़ पाधर' माहै नै मांहरै माथै हजार दुसमण छै, सु कठै कै म्है वांकी ठोड़ देखनै गढ बीजो करावां ।” तरै गढरी ठोड़ देखतो फिरै छै । पछै जेसळमेरथा कोस... प्राथवण सोहागरा भाखर छ, तठे गढ मंडायो, सु बांभण ईसो वरस १४०रो हुवो थो" ; उणरा बेटा रावळ जेसळरी चाकरी करता था सु गढनूं कबाड़ो जाय, सु गाडा नीसरै, तिणरो सोर-हाबो हूंण लागो' । तरै ईसो बेटांनूं पूछियो-“ो सोर कासू हुवै छै ।" तरै ईसारै बेटां कह्यो-"रावळ जेसळ लुद्रवासूं राजी नहीं, सु सोहांणरै भाखर गढ करावै छै, भुरज दोय हुवा छै ।" तरै ईसै बेटांनूं कह्यो-“रावळ जेसळ थे मो तांई तेड़ आवो' । म्हे गढनूं ठोड़ जांणां छां, तिका बतावसां।" पछै ईसारा बेटा जाय नै रावळ जेसळनं तेड़ लाया । तरै ईसै जेसळनं पूछियो-“थे कठै गढ मंडावो छो ?" तरै जेसळ सोहांणरी ठोड़ वताई । तरै ईसै कह्यो-"अठै गढ मत करावो, नै म्हारो नांव राखो जु गढरी ठोड़ हूं वताऊं । मैं पुरातन वात सुणी छै; नै एक वात मैं सुणी छै ।” ईसै वात कही सु कबूल कीवी जेसळ । तरै ईसै वात कही-“एक तो वात मैं यूं सुणी छै–''एकण समै श्री कृष्णदेव अठ किणही काम नीसर आया । अठै म्हारी डोळी छ, कपूरदेसररी पाळ हेटै, तटै आया' । अरजुनजी साथै छै । तद भगवांन अरजनजीनं कह्यो-"इण ठोड़ वांस मांहरी अठै राजधांनी हुसी'2 तठै जेसळमेर गढ मांडियो छैन । अठै तिण माहै जेसळु मुदायत वडो I मैदान । 2 दूसरा। 3 पश्चिम दिशाकी ओर। 4 पहाड़। 5 ईसा नामका एक ब्राह्मण जो १४० वर्षकी आयुका हो गया था। 6 मकान आदि बनानेका सामान । 7 जिसका शोर-गुल होने लगा। 8 यह शोर क्यों हो रहा है। 9 रावल जेसलको तुम मेरे पास बुला लाओ। 10 एक समय । II यहां कपूरदेसर तालाबकी पालके नीचे मेरी डोलीकी जमीन है, वहां आये । (डोहली, डोळी-दानमें दी हुई भूमि)! 12 यहां हमारे पीछे (हमारे वंशजोंकी) इस स्थान पर राजधानी होगी। 13 जहां जैसलमेरका गढ बना है।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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