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________________ २६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात हुय सोरठ-गुजरातनूं गयो । तरै देवराज लापनूं कह्यो"-थे उठे जावो, ... म्हारा आदमी खरच दै साथै थांहरै मेलस्यां; दावै तठासूं ले आवो; म्हारै माथै रतनरो घणो किरावर छै । म्हे रतनसूं घणो भलो करस्यां ।' पछ लांपर्ने देवराजरा आदमी सोरठसू रतननूं ले आया। पछै देवराज रतननूं आपरो बारहटो दियो। माथै छत्र मंडायो । तिणरै पछै देथा चारणारी बेटी देवराज मांगनै रतन परणाई । तिण रतनरै पेटरा भाटियारै चारण रतनूं छै । तठा पछै एक वार रावळ देवराज धार ऊपर गयो,' तद आपरा भाणेजनूं देरावर सूप गयो हूंतो, सु एक वार तो भाणेज फिर बैठो हुतो । पछै देवराज गढ़नूं ढोवो कियो, तरै उण डरनै प्रोळ खोल दी। ... तरै देवराजरै मनमें वात आई। इण गढ़री ठोड़ सूरमी न छै । तदसं बीजी ठोड़ खाटणरी मन धारी11 । तिण दिन लुद्रव पवांरांरी वडी ठाकुराई छै । वीजी ही तिण ठोड़ घणी ठोड़ां पँवांरांरी ठाकुराई छै । सु देवराज लुद्रवो लेणरा दाव-धाव घड़े छै । तरै पैहली तो ... पँवांरांतूं मास ४ कागळवाई13 कीवी । काई अवीरी भली वस्तु व्है. सु मेलै । तिणां साथै आपरै घर माहै. रूड़ेरा आदमी मेलै । उणां आदमियांनूं कहै-"उठारो चास-बास देख आवो।" यूं .. करनै आवो-जाव कीवी । पछै मास ४ प्राडा घात नै लुद्वारा धणियां पँवारां कनै यादमी ४ आपरै घर माहै रूड़ा हुता सु मेलिया । उणां साथै सिंधरी तरफरो कपड़ो, घोड़ा मेलिया नै कागळ दिया। कहाव करायो'- "कहो तो खाडाळ माहै पांणीरो तळाव न छ, नै मांहरै तळाव ३ करावणा छै । थे कहो तो म्हे खाडाळ मांहै तळाव करावां, I मेरे आदमियोंको खर्च देकर तुम्हारे साथ भेजूंगा। 2 चाहे जहांसे ले पायो । 3 मेरे ऊपर रत्नका बहुत उपकार है। 4 रत्नके साथ बहुत भला व्यवहार करूंगा। 5 बारहटका पद । 6 उस रत्नके वंशज भाटियोंके रतन चारण कहलाते हैं। 7 धार ऊपर चढ़ करके गया। 8 सो एक बार तो भानजा वदल गया था। 9 पीछे देवराजने गढ़ पर . घावा किया । 10 इस गढ़की भूमि शूरवीर (वीरभूमि) नहीं है। II जवले दूसरी जगह प्राप्त करनेका विचार किया। 12 घाव करनेके प्रयत्न (दाव-पेच) सोच रहा है। 13 पत्रव्यवहार। 14 कोई अनोखी अच्छी वस्तु हो तो वहां भेजे। IS उसके साथ अपने घरके चपुर मनुष्योंको भी भेजे । 16 वहांके रंग-ढंग (भेद) देख कर पात्रो। 17 कहलवाया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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